गज़ल
घड़ी दो घड़ी बात कर लें जो हमसे।
तबियत मचल जाए मेरी कसम से।।
वो बैठे जो पहलू में आकर मेरे यूं।
हुई कुछ गुफ्तगू ख़ुदा के करम से।।
किया नज़रों ने अनकहा सा बयां कुछ।
नज़र झुक गई मेरी तौबा शरम से।।
नहीं आयेगी नींद फिर आज हमको।
बसे हैं निगाहों में सातों जनम से।।
खता करके हमसे सज़ा पूछते हैं।
परेशां हूं यारों मुहब्बत के ग़म से।।
— प्रीती श्रीवास्तव