नमामि गंगे
मैं नदिया हूँ,चंचल हूँ
मैं करती हूँ मनमानी
शीतलता देता है मेरा
निर्मल बहता पानी
हर तरंग मदमस्त उछलती
लहरो की अंगड़ाई से
नाविक गीत सुनाते हैं
पतवारो की शहनाई से
हर नौका कहती है मेरी
अलग ही एक कहानी
शीतलता———–
जलचर मेरी विरासत है
तट,तीर्थ मेरी पहचान
सिंचित खेतो को मैं करती
सरसो हो या धान
मैं जीवन धारा हूँ
प्यासे की है प्यास बुझानी
शीतलता———
जगमग घाट मिलेगें तुमको
घाट मेरे जब आओगे
तुम्हे मिलूंगी अविरल बहती
भूल नही तुम पाओगे
सरयू के तट हों,या हो
काशी की शाम सुहानी
शीतलता———
— शालिनी शर्मा