कोई अपना
मंजिलें मिले हर किसी को ये मुमकिन नहीं
कुछ सफ़र तो उम्रभर खत्म होती नहीं !
हाथों की लकीरों में होती हैं तकदीर सभी की
क्या उनकी तकदीर नहीं जिनके हाथ होते ही नहीं !
जिन सपनों के पीछे भागा किए उम्रभर
जब सपने पूरे होने को हुए तब उम्र बाकी नहीं !
अपने पराए का भेद करते रहे हर कहीं
जब घर के चिराग भेद करें तब सहा जाता नहीं !
बेसबब और बेमानी है जिंदगी की खुशियां सभी
जब खुशियां बांटने को कोई अपना पास नहीं!
— विभा कुमारी “नीरजा”