कविता

सफर मेरा सुहाना हो गया

कितनी कठिन थी डगर

पर हिम्मत कम नहीं थी

चाह थी एक हमसफर की

और तुम साथ आ गई

सफर मेरा सुहाना हो गया।

घोर अमावस में

तुम दीपशिखा- सी जली

बनके मेरी ताकत

 हमसाया बन  मुस्काती रही

तुम जो हम कदम बनी मेरी

सफर मेरा सुहाना हो गया।

अस्त व्यस्त था जीवन मेरा

शूलों से भरी थी डगर

 अनिश्चयता के अँधेरे को

चीरकर तूने मशाल जलाई

हमराज  मेहरबान मेरे

तुम ही जिंदगी मेरी

तेरा साथ जो मुझे मिला

सफर मेरा सुहाना हो गया।

— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]