डूबती निगाहें
बिखरे तो गई हूं फूलों के मानिंद तेरे दामन में
अब समेटना न समेटना ,है..तुम्हारा हाथों में
बड़ी देर से थामे हूं इन सांसों की डोर को
अब बस तेरे आने का इंतजार है…इन डूबती निगाहों में
गैर मामूली सी लगती है मुलाकात अपनी
खास हो गई मुलाकात अपनी तेरे मुस्कुराहट में
फलक से तोड़ लाऊंगा चांद सितारों को
लेकिन वादा तो फलक तक साथ निभाने में
कैसे खुद आग लगा दूं प्यार के खतो को
उनमें तेरी यादों की खूशबू आती है!!
— विभा कुमारी “नीरजा”