कविता

एक दीया जला देना

अपने बच्चों के खातिर
खूब पटाखे ले लेना
मगर उनकी झोपड़ियों में
एक दीया जला देना
वह उदास हो ,देखता है
चाहत भरी नजरों से
आपके सजे हुए भवन
तुम्हारे बच्चों के हाथों
रँगीन मोमबत्तियां, पटाखे
देख मचलता होगा मन
बच्चे हैं और बचे हैं
महलों के चारों तरफ,
झोपड़िया,उसमें रहने वाले
निहायत गरीब-गुरबों के बच्चे
जो सुबह उठकर,तुम्हारे घरों
के पास खोजते हैं, कुछ पटाखे
कुछअधजली मोमबत्तियां
लेकर भागते हैं जैसे कोई
बहुत कुछ मिल गया हो
इन बच्चों के माता-पिता
आपके घर कमाकर खाता है
आपके घर की औरतें ही मानो
इन सबों की लक्ष्मी माता है
सालों भर गुण गाता है
आपके घरों को चमकाता है
तब जाकर अपने रसोई में
आटा-चावल सब्जी लाता है
मंहगाई इस कदर बढ़ी है
मजदूरी के पैसे कहाँ बचा पाता है
अब तो पैसे बचते नहीं है
सरकारी नौकरी वालों के
फिर कहाँ से बचेंगे
टोकरी वालों के
तीन सौ रुपये की कमाई है
ऊपर से कुछ बुराई है
थके हारे कुछ पी लेते हैं
इस तरह रोज़-रोज़
अपनी जिंदगी जी लेते हैं
वह भी अपने बच्चों को
पढ़ाना चाहते हैं
जीवन के ,इस दुख को
मिटाना चाहते हैं
इंतजार है, अच्छे दिन का
पर कहाँ आता है
मिला था गैस, सो रखा है
वही चूल्हा जलाता है
दो सौ रुपये का सरसों तेल
खरीद कर खाता है
आवास के लिए
दिया है पिटिशन बाबुओं को
अपनी झोपड़ी में आकर
आज भी सो जाता है
उनके बच्चों के खातिर भी
दोस्तों कुछ खरीद लेना
अपने घर से बाहर निकल
उनके झोपड़ियों में भी
एक दीया जला देना
एक दीया जला देना ।।

— नेतलाल यादव

नेतलाल यादव

उत्क्रमित उच्च विद्यालय शहरपुरा, जमुआ,गिरिडीह, झारखंड, पिन कोड-815312 व्हाट्सएप-8294129071