गीतिका/ग़ज़ल

डूबती निगाहें

बिखरे तो गई हूं फूलों के मानिंद तेरे दामन में 

अब समेटना न समेटना ,है..तुम्हारा हाथों में 

बड़ी देर से थामे हूं इन सांसों की डोर को

अब बस तेरे आने का इंतजार है…इन डूबती निगाहों में 

गैर मामूली सी लगती है मुलाकात अपनी

 खास हो गई मुलाकात अपनी तेरे मुस्कुराहट में

फलक से तोड़ लाऊंगा चांद सितारों को

लेकिन वादा तो फलक तक साथ निभाने में 

कैसे खुद‌ आग लगा दूं प्यार के खतो को

उनमें तेरी यादों की खूशबू आती है!!

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P