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अंतस् की 53 वीं काव्य गोष्ठी

कबीरा खड़ा बाज़ार में, माँगे सबकी ख़ैर
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर
चिर-परिचित, आज भी प्रासंगिक कबीर दास के इस प्रचलित दोहे को पढ़ते हुए निर्णायक डॉ आदेश त्यागी जी ने पाँच उत्कृष्ट दोहों और उनके रचयिता कवि-कवयित्रियों के नाम घोषित किए।
ज्ञात हो दोहा सम्राट कबीर को समर्पित अंतस् की अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन दोहा गोष्ठी सार्थक व रोचक रही।
22 दिसंबर, 2023 को ज़ूम के माध्यम से रात्रि 8 बजे से ठीक 10 बजे तक आयोजित इस गोष्ठी के अध्यक्ष रहे वरिष्ठ कवि-शायर डॉ आदेश त्यागी जी। गोष्ठी का स्वरूप प्रतियोगिता का था और निर्णायक का दायित्व भी बहुत धैर्य और कौशल से निभाया एसीपी डॉ त्यागी ने।
संकल्पना, संयोजन और संचालन किया अंतस् की अध्यक्ष पूनम माटिया ने।
दोहों की विधा और कविवर कबीर को समर्पण ने साल के आख़िरी माह में आयोजित अंतस् की इस 53वीं गोष्ठी में उत्सव का माहौल बना दिया।
देश-विदेश के चयनित दस कवि-कवयित्रियों (कृष्ण कु. दूबे, कोलकाता; डॉ प्रतिभा माही, पंचकूला; डॉ दमयंती शर्मा, मुम्बई; डॉ मनोज अबोध,भुवनेश्वर; श्री मनोज कामदेव, ग़ाज़ियाबाद; श्रीमती सोनम यादव, ग़ाज़ियाबाद;श्रीमती सुशीला श्रीवास्तव, बंगलोर; डॉ तारा गुप्ता, ग़ाज़ियाबाद;कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा; श्री कृष्ण बिहारी शर्मा, तंजानिया) ने अपने श्रेष्ठ पाँच-पाँच दोहे पढ़े जो लिखित रूप में पहले ही आमंत्रित किये गए थे। भाव, शब्द-चयन, शिल्प और सार्वकालिकता तथा प्रस्तुति के आधार पर इन दोहों के रचयिता-विजेताओं को अंतस् द्वारा नकद पुरस्कार(टोकन अमाउंट) के साथ प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गये| कबीर के लेखन, उनकी घुमक्कड़ी, सधुक्कड़ी भाषा, जीवन, अध्यात्म, पाखंड कर खंडन और जन-जागरण के विषय में उपस्थित कवियों, श्रोताओं ने अपने भाव-विचार रखे। इससे पहले सोनम यादव ने भावपूर्ण सरस्वती-वंदना प्रस्तुत कर गोष्ठी का मांगलिक आरंभ किया।
निर्णायक डॉ आदेश त्यागी जी द्वारा चयनित प्रथम छह दोहे ये हैं:-
अंतस् उजला कर गयी, राम नाम की भोर
जगत अयोध्या लग रहा, राम दिखें हर ओर(डॉ दमयंती शर्मा ‘दीपा’)
दिल कब तक ढोता रहे, तस्वीरों का भार
कीलें इतनी ठोंक दीं, टूट गयी दीवार(मनोज ‘कामदेव’)
मूल मंत्र विश्वास है, रखना इसका ध्यान
सुहृद स्वजन मनमीत का, कभी न हो अपमान( कृष्ण कु दूबे)
रामायण पढ़ कर मिला, जीवन को आधार
मन में अब आता नहीं, कोई बुरा विचार(डॉ तारा गुप्ता)
हम हैं फूल गुलाब के, ख़ुशबू के पाबंद
सूखे भी तो बन गए, उपयोगी गुलकंद(मनोज ‘अबोध’)
सुनी-सुनाई बात पर, मत करना तक़रार
क्या सच है क्या झूठ है, करना ज़रा विचार(सुशीला श्रीवास्तव)
अन्य रेखांकन करने योग्य दोहे
उनको ज़िंदा क्या कहें, जिनके मरे ज़मीर
अब कुबेर के द्वार पर, झुकने लगे कबीर(डॉ आदेश त्यागी)
जीवन मायाचक्र है, जैसे चाक कुम्हार
जैसी थापी कर्म की, वैसा ही आकार(डॉ पूनम माटिया)
निकले धोखेबाज़ हैं, मेरे अपने लोग
दम्भ, कपट, पाखंड के, लगे सभी को रोग(सोनम यादव)
माझी!करता सिर्फ़ तू, सबका बेड़ा पार
महज बहाने हैं सभी, नैया अर पतवार(कृष्ण बिहारी शर्मा)
देवतुल्य है हर पिता, जीवन का है मूल
वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल (कर्नल प्रवीण त्रिपाठी)
पग-पग पर बैठे यहाँ, बाघ, भेड़िये आज
देखन में बगुला-भगत, भीतर से हैं बाज(डॉ प्रतिभा माही)
उपस्थित सुधि काव्य-रसिक श्रोताओं में श्रीमती अंशु जैन, श्री देवेंद्र प्रसाद सिंह, डॉ दिनेश कुमार शर्मा, डॉ उषा अग्रवाल, श्रीमती सुनीता राजीव जी, डॉ सरिता गर्ग ने भी अपने उद्बोधन में कबीर और दोहों पर संक्षेप में विचार रखे। अन्य प्रबुद्ध श्रोता भी देश-विदेश से इस आयोजन के साक्षी बनें- श्री नरेश माटिया(संरक्षक, अंतस्),डॉ पुष्प लता भट्ट, डॉ शैलजा सक्सेना, डॉ नीलम वर्मा, श्रीमती ऋतु भाटिया, श्रीमती सुनीता अग्रवाल,श्रीमती पूजा श्रीवास्तव तथा अन्य कई।
अंत में डॉ दमयंती तथा श्री कृष्ण कु दूबे जी ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित किया|

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]