क्षणिका

क्षणिकाएँ

1-

तलाशता हूँ आज आदमी को 

आदमी न जाने कहाँ खो गया 

जिस चेहरे को भी देखता हूँ

आदमी की शक्ल में

हैवान छुपा मिलता है 

2-

घर बटा

रुपया पैसा बटा

जर के साथ

बट गए माँ बाप भी

एक के हिस्से में माँ आई

दूजे के हिस्से बाप

3-

सूरज चलते चलते

अस्त की और बढ़ गया

मैं भी अग्रसर उस ओर ही हो रहा

अस्त होने से पहले

रोशनाई देकर जाऊंगा.

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020