परछाई
तू मेरी रुह में है शामिल कुछ इस तरह
धड़कनों में है सांस जिस तरह !
हम दुनिया को दो नजर आते हैं
लेकिन रहते हैं दो जिस्म एक जान की तरह !
तुम जहां भी हो शामिल मेरा जिक्र हो रहा है
मेरे महफ़िल में हो तुम शामिल ,ग़ज़लो की तरह !
दिन रात को मिलते नहीं देखा हमने
लेकिन तुम्हारा मेरा मिलना है शाम की तरह !
तुम साथ चलो या न चलो
मेरे साथ हमेशा रहते हो परछाई की तरह !
तेरे वगैर क्या है वजूद मेरा
तुम हो मेरे लिए पहचान पत्र की तरह !
जिंदगी की जद्दोजहद ने झुलसा दिया था हमें
तुम आए हो तेज तपिश में बारिश की तरह !
अपने होने पर शुबा होता है हमें
तुम्हारा होना है मेरे होने की तरह !
— विभा कुमारी “नीरजा”