कविता

परछाई

तू मेरी रुह में है शामिल कुछ इस तरह

धड़कनों में है सांस जिस तरह !

हम दुनिया को दो नजर आते हैं 

लेकिन रहते हैं दो जिस्म एक जान की तरह !

 तुम जहां भी हो शामिल मेरा जिक्र हो रहा है

मेरे महफ़िल में हो तुम शामिल ,ग़ज़लो की तरह !

दिन रात को मिलते नहीं देखा हमने 

लेकिन  तुम्हारा मेरा मिलना है शाम की तरह !

तुम साथ चलो या न चलो

मेरे साथ हमेशा रहते हो परछाई की तरह !

तेरे वगैर क्या है वजूद मेरा

तुम हो मेरे लिए पहचान पत्र की तरह !

जिंदगी की जद्दोजहद ने झुलसा दिया था हमें 

तुम आए हो तेज तपिश में बारिश की तरह !

अपने होने पर शुबा होता है हमें

तुम्हारा होना है मेरे होने की तरह !

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P