चला मुसाफ़िर
बहुत देखा हूं…,
संसार को जानने के लिए
चला मुसाफिर भी
वापस आए स्वयं को भूलाकर !
गुलशन में गए
गुल और खुशबू के लिए
वापस आए रक्तभ्य होकर !
जो निकले
प्यार मोहब्बत
ढूंढ़ने के लिए
रह गए अंधकार में खोकर !
मुझे आत्मीय विश्वास है
किसी दिन…,
तुम्हें भी याद आएगी मेरी
सामिप्यता और हृदय का प्रेम !
वह दिन…,
वापस आने के लिए
मैं नहीं रहूंगा…,
विलीन हो चुका रहूंगा
गर्दिश में खोकर…!!
— मनोज शाह मानस