कविता

चला मुसाफ़िर

बहुत देखा हूं…,
संसार को जानने के लिए
चला मुसाफिर भी
वापस आए स्वयं को भूलाकर !

गुलशन में गए
गुल और खुशबू के लिए
वापस आए रक्तभ्य होकर !

जो निकले
प्यार मोहब्बत
ढूंढ़ने के लिए
रह गए अंधकार में खोकर !

मुझे आत्मीय विश्वास है
किसी दिन…,
तुम्हें भी याद आएगी मेरी
सामिप्यता और हृदय का प्रेम !

वह दिन…,
वापस आने के लिए
मैं नहीं रहूंगा…,
विलीन हो चुका रहूंगा
गर्दिश में खोकर…!!

— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

सुदर्शन पार्क , मोती नगर , नई दिल्ली-110015 मो. नं.- +91 7982510985