कविता

मैं पापा की परी हूँ

सब कहते हैं कि मैं पापा की परी हूँ।

पर मेरी दुविधा नहीं जानते

मैं अपने पापा के लिए

कितना चिंतित रहती हूँ 

पापा को थोड़ी सी भी देर होती है 

तो चिंतित हो जाती हूँ

पापा अभी तक क्यों नहीं आए? 

तब पापा घर आकर भोजन करके 

सबसे बात करके आराम से 

सो नहीं जाते तब तक

मुझे चिंता रहती है 

क्योंकि मैं पापा की परी हूँ

जब पापा सुबह उठते हैं

ऑफिस के लिए खुशी-खुशी जाते हैं

तब मुझे चिंता नहीं होती है

पर पापा यदि शाम को आने में

थोड़ी सी भी देर करते हैं 

तो मुझे चिंता हो जाती है

जिस दिन पापा आते ही

चुपचाप अपना बैग रखकर 

बिस्तर पर सो जाते हैं तो

मैं चिंतित हो जाती हूँ 

पापा जब किसी बात पर

चिंता नहीं करते हैं तो

मैं पापा के लिए चिंतित हो जाती हूँ

क्योंकि मेरे पापा हम सबको

बहुत चाहते हैं।

मैं बिटिया हूँ अपने पापा की

सब कहते हैं मैं पापा की परी हूँ

काश मैं पापा की परी बनूँ

एक छड़ी पकडूँ और सारे

दुख दूर कर दूँ।

— मीना दुष्यंत जैन 

मीना जैन दुष्यंत

निवास -गोविंदपुरा भोपाल मध्यप्रदेश M- 9826738861 Email- meenajain14@gmail.com परिचय - शिक्षा - एम .ए. ( हिन्दी ,संस्कृत ,समाजशास्त्र)बी. एड. एम. फिल. ,वैद्य विशारद 2)व्याख्याता (हिन्दी, संस्कृत) शिक्षक -धार्मिक ,आध्यत्मिक प्रवचनकार 3) सामाजिक सेविका -.दस वर्षों से अखिल भारतीय स्तर पर निःशुल्क युवक -युवती परिचय सम्मेलन आयोजित करना।मंच सञ्चालिका 4) वैवाहिक सम्बन्धों( में खटास पड़ने पर )काउंसलर की भूमिका 6)महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यरत। 7) कोरोना के समय महती भूमिका निभाने पर कोरोना योद्धा सम्मान समाज जन से। 8) साहित्यिक अभिरुचि.. लेख ,कथा ,कविता ,आदि लिखने पर सम्मान प्राप्त।