पुराना शहर
चले हम देखने
वो पुराना शहर
वो मकान,जो था
कभी अपना आशियाना
लग चुका था अब
किसी और का नेमप्लेट
पत्र-पेटी का मुंह खुला था
न रोक पाया खुद को
डाला हाथ,उम्मीद से
शायद मेरी पड़ी हो
किसी प्रिय की चिट्ठी
मायूसी मिली
मनीप्लान्ट मेरे बिना भी
लहलहा रहा था
गौरैया पहले की तरह
दरीचे के पास
चहचहाहट रही थी
क्षोभ हुआ यह देख
सीख मिली
किसी के चले जाने से
कुछ रूकता नहीं
सब यथावत चलता रहता है
जाने वाला बेवजह
चिन्ता लिए जाता है
— डा. मंजु लता