ग़ज़ल
मुंह से कुछ ना बोल ज़माना ठीक नहीं।
दुनियां देगी रोल ज़माना ठीक नहीं।
तेरी सच्चाई इल्लज़ाम में बदलेंगे,
बंद मुट्ठी ना खोल ज़माना ठीक नहीं।
दुनियां सब कुछ चोरी चोरी देख रही,
पूरा-पूरा तोल ज़माना ठीक नहीं।
दुनियां में आए पाटे खां भी चले गए,
तेरा बजना ढोल ज़माना ठीक नहीं।
मुंह से कोई बात ना कहना उल्फ़त की,
सजना धरती गोल ज़माना ठीक नहीं।
अपने सगे ही आँख बचाकर कुएं में,
ज़हर देते हैं घोल ज़माना ठीक नहीं।
निंदा चुगली बर्बादी ही करती है,
व्यर्थ ना खिदो फोल ज़माना ठीक नही।
मूर्ख व्यक्ति को शिक्षा क्यों देता है,
बन कर रह अनभोल ज़माना ठीक नहीं।
सांपों से याराने क्यों है पाल रहा,
जीवन है अनमोल ज़माना ठीक नहीं।
बंदूकों में फिर दोबारा चलते नहीं
गोली के यह खोल ज़माना ठीक नहीं।
रिश्वत देकर यारों से करवाना मत,
पुस्तक की पड़चोल ज़माना ठीक नहीं।
बालम तुम को लोग कहेंगे मुर्ख है,
बाणी रख समतोल ज़माना ठीक नहीं।
— बलविंदर बालम