अैसे हि तो नही मिटे गी
अैसे ही तो नही मिटे गी – दासतां हमारी इस जहां से
हुहत गैहरे हैं निशान हमारे -हमारे कदमों के इस जहां में
दुशमन ही नही दोसत भी कोशिश में हैं – हम को ममिटाने की
मोहरम अब कोई नही है बाक़ हमारा – इस जहां में
हम ही जानते हैं दरद जो हम ने -छुपा रखा है हमारे सीने में
क़ैद में अपनी ही मजबूरियों की बंद हैं – हम तो इस जहां में
आप की आमद से खिल उठता है – चमन हमारे दिल का
दीददार आप का मिलना – बुहत ही मुशकिल हो गया है इस जहां में
सवाल मत पूछो हम से हमारी बेबसी का – एस जहां मे
जवाब इस बात का हम लाएं कहां से
उलजे हुए हैं तो – हम तो अपनी ही लगाई हु ई बनदिशों में
क़ातिल हम खुद ही बन गैए हैं – अपने ही अब तो इस जहां में
भुुझे हुए शोले हैं हम बेशक – अपपनी ़िनदगी की शमा के
रौशनी फर भी बुहत सारी फैला रहे हैं हम – इस जहां में
याद आप को हमारी आति ही रहे गी – हमेशा इस ज़िनदगी में
इस ज़िनदगी में दिल मिले हैं -जाने कैसे मेहरबान से
शामल हुए नही कभी भी आप – खुशी से हमारी ज़िनदगी में
अैसे कियूं गुम हैं आप – अपनी ही अना के नशे में
फूल खिलते हैं हमारे चमन में -सिरफ आप की हनसी से
हाल पूछते नहीआप हमारा जाने किस गुमान में
पनछी भी पैहचानते हैं – खबर जो आप लेते हैं हमारी –मदन —
ज़िनदगी हमारी हम तो जी रहें हैं सहारे आप के स जहां में
इस क़दर नाज़ुक है शाख आप के लगाए हुए पौदों की
कहीं गिर कर टूट ना जाए यिह – फूलों के ही वज़न से
— मदन लाल