तेरी बिन्दी
“क्या हुआ निखिल? इतनी दूर से क्या इशारा कर रहे हो। कुछ समझ नहीं आ रहा है।” ऐसा कहकर नंदिनी कार्यक्रम देखने में लग गई। निखिल पागल हो गए हो क्या, इतनी भीड़ में इस तरह क्या कर रहे हो। अरे नंदिनी रुको तो, मुझे पता था कल हमने तुम्हें कहा था, तो आज तुम जरूर यह करके आओगी।
क्या किया है हमने निखिल, आज तुम्हारी दोनों भोहों के बीच, तुम्हारे ललाट पर मैं सुशोभित हो रहा हूँ ,लेकिन तुमने दोनों भोहों के मध्य मुझे नहीं रखा किनारे रखा है।
ये गुस्ताखी की है तुमने बस उसे ही ठीक कर रहा हूँ बिन्दी बीच में कर रहा हूँ।तो इतना करीब और इतने पास क्यों आ गए हो। नंदिनी मेरा हाथ बाँस की भांति लंबा नहीं है। निखिल क्या मजाक कर रहे हो।
सच बताना तुमने यह बिंदी लगाते वक्त मुझको जिया है ना।जब तुम बिन्दी लगा रही हो तो मंद मंद मुस्कान के साथ मुझे सोच रही थी ना।
निखिल कुछ भी बोलते हो। निखिल नंदिनी की बिन्दी को उसके भौहों के बीचों बीच लगा रहा था, और नंदिनी की धड़कने असामान्य हो रही थी। निखिल भी इससे अछूता नहीं था। लेकिन दोनों माहिर थे अपने एहसास और जज्बात को छुपाने में, और मजे की बात यह है कि दोनों इस सच्चाई से वाकिफ थे कि वो दोनों जज़्बात छुपा रहे हैं।
घर जाकर नंदिनी ने उस बिन्दी को जोर से पकड़ कर अपने आगोश में कर लिया। फिर उस बिंदी को आईने पर लगाते हुए कहीं निखिल जी अब इस आईने पर विराजिये, और हाँ आँखें बंद रखना सोने जा रही हूँ।
अगली सुबह नंदिनी सोच रही थी कि कितनी ताजगी भरी हुई हैं ये सुबह और आत्मिक सुकून सा लग रहा है।
उसने तो सिर्फ बेहद करीब आकर बिंदी ही तो बीच में लगाई थी। इतने में ही इतना बदलाव और निखार। क्या है यह?
अच्छा कल निखिल ने कहा था कि एक सरप्राइज उपहार मिलेगा तुम्हें तुम्हारे कॉलेज के लाइब्रेरी के तुम्हारे बेंच पर।अब फटाफट तैयार होते हैं, क्या है सरप्राइज में?कहीं किसी और के हाथ में ना लग जाए।
दरवाजे पर ताला लगाने ही वाली थी, कि फिर वापस अपने कमरे में आई, और आईने से बिंदी निकाल कर, मुस्कुराते हुए अपने माथे पर लगा ली। और भागी लाइब्रेरी। उसने देखा उसकी टेबल पर एक पैकेट था उसमें एक पर्ची थी निखिल की लिखी हुई।निखिल ने लिखा था इस जन्म में यह तो संभव नहीं हो सकेगा इसलिए स्केच के द्वारा ही मैंने अपनी भावनाएं व्यक्त की है।
अब उस स्केच को नंदिनी ने देखा वह निखिल की बनाई हुई स्केच थी। लेकिन उस स्केच में जिसके लिए निखिल ने पहले ही लिख दिया था कि नंदिनी यदि तुम्हारी भावनाएं स्केच को देख दुखी हो तो तुरंत फाड़ देना और हमें माफ भी कर देना।
लेकिन उस स्केच को देखते ही नंदिनी की आँखें भर आई और उसने इस स्केच को सीने से लगा लिया दूर खड़ा निखिल इन सारी हरकतों को देख रहा था और आत्ममुग्ध होकर चला गया।
उस स्केच में निखिल ने नंदिनी की छवि पर लाल बड़ी बिंदी और माँग में सिंदूर भरी थी, और लिखा था एक संपूर्ण रमणी नंदिनी।
फिर नंदिनी मन ही मन गुनगुनाते हुए जा रही थी।
जिस्म की बात नहीं थी तेरे दिल तक आना था…
— सविता सिंह मीरा