ग़ज़ल
खुद अपनी क्षमता से बढ़ कर बोझ उठाना ठीक नही
रातो -दिन सपनो का बुनना ताना बाना ठीक नही
पैसा प्यार वफ़ा मज़हब है दीन धरम ईमान यहाँ
इस की चमक दमक मे भावुक मन दिखलाना ठीक नही
सब के सब मसरूफ बहुत हैं अपनी अपनी दुनिया में
इस बस्ती में किसी को दिल का हाल बताना ठीक नहीं
जहाँ मिलेगा जिसको मौका वो गठरी हथिया लेगा
अज़नबियो को किसी सफर में दोस्त बनाना ठीक नहीं
ये दुनिया बाजार यहाँ पर सिर्फ तिज़ारत होती है
सोचे समझे बिना किसी का मोल लगाना ठीक नही
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव
