बेटियों से मत छीनो
बेटियों से मत छीनों तुम उनका स्वतंत्र अधिकार,
बहने दो उनमें भी निर्बाध अमृत “आनंद” रसधार ।
बिटिया संस्कारों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढाती,
तुम्हारे ऑंगन को अपनी चहल-पहल से सजाती,
तुम्हारे मौन भावों को वो बिना कहे समझ जाती,
समय से पहले ही जिम्मेदारियों में रच बस जाती,
निभाती है वो कई रूपों में बख़ूबी अपना किरदार,
बहने दो उनमें भी निर्बाध अमृत “आनंद” रसधार ।
आज तुम्हारे ऑंगन में एक नन्ही कली है मुस्कराई,
कल समाजिक रीति-रिवाजों में बॅंध करोगे विदाई,
क्यों तुमने छिना हक उनका हिस्से में दी रूसवाई,
क्या जानते हो सीने में अनकही इच्छाएं उसने छुपाई,
मत बनाओ उनको खोखली रूढ़िवादिता का शिकार,
बहने दो उनमें भी निर्बाध अमृत “आनंद” रसधार ।
पुरानी कुरीतियों, प्रथाओं का बोझ उन पर हो डालते,
क्यों उनकी प्रतिभा को दूसरों से सदा कम हो आंकते,
बिटिया को भी दो पंख तुम फलक में उड़ने के वास्ते,
अपनी सशक्त पहचान बनाने के लिए खोल दो रास्ते,
बेटे हैं कलेजा तो बिटिया को भी करो तुम स्वीकार,
बहने दो उनमें भी निर्बाध अमृत “आनंद” रसधार ।
बेटियों से मत छीनों तुम उनका स्वतंत्र अधिकार,
बहने दो उनमें भी निर्बाध अमृत “आनंद” रसधार ।
— मोनिका डागा “आनंद”
