कविता

कहानी बॉर्डर की

ये कैसी जंग हुई जिसने लाखो का जान लिया
एक पल में ही लाखो माँ के बेटे और उनकी पत्नियो के मांग को ऊजार् दिया

उन शहीदों में हो सकता है कोई अपनी माँ का एकलौता आँख का तारा था
या ये भी तो हो सकता है वो एक मात्र अकेला ही उस घर का सहारा था

कोई अपनी नयी नवेली दुलहन को जन्मों – जन्मों तक साथ निभाने का वादा कर के लाया था

क्या बीतेगी उस पर ये
सुन कर की चला गया वो तुम्हे छोर कर जो तुम्हारा सहारा था

होगी उसमे कोई ऐसी माँ जो आँखों से ना देख सकती होगी
कब आये उसका बेटा जो उसकी आँखों का इलाज कराये वो ये राह देख रही होगी

अरे वो हैवानो मुझे बस इतना बता दो
क्या मिलता है जंग कर के
हमे बस ये समझा दो

तुम भी तो अपनी माँ के बेटे हो
वो भी तुम्हारी राह देख रही होगी
कब तक घर जाओगो वो सोच रही होगी

तुम जो हुए शहीद तो क्या वो जी पाएगी
तुम खुद ही सोचे की तुम्हारे जाने के बाद वो अकेले कैसे रह पाएगी

मेरे दुश्मन मेरे भाई जीते जी तो रह लोगो महलो में
मगर मरने के बाद 2 गज का कफ़न और
5 मीटर का जमीन ही पाओगे

ये दुनिया और याहा का हर एक वस्तु नसवर है यहाँ ना कुछ लाये थे और ना कुछ ले जा पाओगे.
ये जंग तो हमसे हमारी खुशिया छिन ले जाती है
तुम ही बताओ क्या हमे ये कुछ दे जाती है
आओ यहाँ बैठो और हम एक साथ आज ये कसम खायेंगे
चाहे हो कुछ भी मगर किसी की मांग का सिंदूर और एक माँ का कोख ना मिटायेंगे

अखिलेश पाण्डेय

नाम - अखिलेश पाण्डेय, मैं जिला गोपालगंज (बिहार) में स्थित एक छोटे से गांव मलपुरा का निवासी हु , मेरा जन्म (23/04/1993) पच्छिम बंगाल के नार्थ चोबीस परगना जिले के जगतदल में हुआ. मैंने अपनी पढाई वही से पूरी की. मोबाइल नंबर - 8468867248 ईमेल आईडी [email protected] [email protected] Website -http://pandeyjishyari.weebly.com/blog/1