गीत/नवगीत

गीत : फूल खिले हैं प्यार के

फूल खिले हैं प्यार के
गले मिलो गुलनार के
साये में दीवार के
फूल खिले हैं ……………….

जीतो अपने प्यार को
लक्ष्य करो संसार को
अपना सब कुछ हार के
फूल खिले हैं ……………….

ऐसे डूबो प्यार में
ज्यों डूबे मझधार में
नैया बिन पतवार के
फूल खिले हैं ……………….

ख़ुशी मनाओ झूमकर
धरती-अम्बर चूमकर
सपने देखो यार के
फूल खिले हैं ……………….

दिल से दिल को जोड़िये
प्रेम डोर मत तोड़िये
बोल बड़े हैं प्यार के
फूल खिले हैं ……………….

*गुलनार — अनार की एक किस्म की प्रजाति जिसमें फल नहीं लगते।

—गीतकार : महावीर उत्तरांचली

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६