गीतिका
मानव अधिकार की धज्जियों को उड़ते देखा
हमने पल-पल यहाँ बच्चियों को मरते देखा
थी जिनकी उम्र गुड्डे-गुड़ियों संग खेलने की
उन्ही बच्चियों के पेट में पाप को पलते देखा
मासूम बच्चियां जनमती अनचाही संतानों को
बच्ची हो कोख में तो गर्भों को गिरते देखा
ये कैसी लचर कानून वयवस्था है इस देश की
बलात्कारियों को खुले आम विचरते देखा
नहीं रही महफूज बेटियां अब अपने घरों में भी
बाप के हाथों बेटी की अस्मत को लुटते देखा
कभी मारी जाती कोख में, कभी फेंकते पैदा कर
दहेज की आग में तिल-तिल कर जलते देखा
मानवता हो रही शर्मसार हर रोज आज यहां
हवस के अंधे इंसानों को दानव बनते देखा
— प्रिया वच्छानी
आप ने भारत की सही तस्वीर खींच दी ,कोई भी चैनल देखो ,ऐसी ख़बरें ही देखने सुनने को मिलती हैं .