कविता

बेवजह कुछ माँगने!

झुकता नहीं हूँ मैं उन मंदिर और मस्जीद में!
जहाँ जाते हैं सब बेवजह कुछ माँगने।

देते तो हैं नहीं उस मुफलीस को कुछ,
जो आता नहीं बेवजह कुछ माँगने।

बदल देते हैं मुर्शिद, मुराद पुरी ना होने पर;
चले जाते हैं कहीं और, बेवजह कुछ माँगने।

जब जानते हो, माँगने से मर जाना अच्छा,
तो फिर क्यूँ जाते हो,कहीं बेवजह कुछ माँगने?

© Mayur Jasvani
12-01-15
8:00 a.m

मयूर जसवानी

Nothing to say about me. Because I'm EMPTY. Whatever I'll say,you can't belive as far as you don't get profe, so its better to be Unknown and become Colse. Think About It & even you want to know about me then 1sf of all, "Keep EMPTY Your Self"