ढली है शाम मग़र रात अभी बाकी है..
ढली है शाम मग़र रात अभी बाकी है।
ज़िंदगी तुझ से मुलाकात अभी बाकी है॥
हुई हैं बात अभी तो भली भली केवल।
ख़ार से चुभते सवालात अभी बाकी है॥
रोशनी में कहां नज़र आयेगा सब कुछ।
घने अंधेरों की सौगात अभी बाकी है॥
जो बदल जायेगे किरदार रात होते ही।
देखनी उनकी औकात अभी बाकी है॥
जो होकर भी नही हुई तेरे मेरे दरमियां।
अनसुनी अनकही बात अभी बाकी है॥
आ ही जायेगा असली किरदार सामने।
ज़ालिम के कहर की रात अभी बाकी है॥
जो उज़ालों में नज़र आते है फरिश्तो से।
सत्य पर उनके आघात अभी बाकी है॥
सतीश बंसल