प्यारे पापा
उन्गली पकडकर चलते चलते,
मैं जब भी गिर जाती थी ।
मुझे उठाकर लाड लडाते,
मैं झट से हस जाती थी ।
हर छोटी सी जीत मुझे वो,
जग जीता सा बतलाया ।
पाया जब जब मुझे अकेला,
साथ खडा उनको पाया ।
मां मुझको जब डाट लगाती,
मां की गलती ढूंढ रहे ।
जब आते आंखो में आसू,
मेरा माथा चूम रहे ।
प्यार भरा फिर हाथ फेर कर,
लाखों आशीष लुटाते हैं ।
खुद की नींदे दाव लगा कर,
चैन की नींद सुलाते हैं ।
मुझे समझते परी वो अपनी ,
राजकुमारी भी कहते ।
मेरी खुशी के खातिर वो,
जाने कितने दुख सहते ।
अन्धेरो से मैं डरती तो,
मेरा सहारा बन जाते ।
जिनमें हैं ये सारी खूबी,
मेरे पापा कहलाते ।
प्यारे पापा कहलाते ………………
अनुपमा दीक्षित मयंक
प्रिय सखी अनुपमा जी, सचमुच पापा सबल सहारा होते हैं. अति सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.