ग़ज़ल /गीतिका
उस ने सोचा सही आदमी की तरह
भावना से भरा दिल नदी की तरह |
हर समर जीतना, है नहीं लाज़मी
मैं न माना है, बेचारगी की तरह |
अडचनों से कभी, हम डरे ही नहीं
हम ने देखा नहीं, जिंदगी की तरह|
इंतजारों के पल तो, गुज़रता नहीं
हर घडी बीतती, चौजुगी की तरह |
होती वर्षा कभी, मूसलाधार भी
नाली बहती है क्रोधी, नदी की तरह |
दौड़ के होड़ में, था वही अप्रतिम
तेज भागा वही, बारगी की तरह |
बारगी – घोड़ा
कालीपद ‘प्रसाद’