कविता : आज शाम
पहाडोँ का आँचल हरा है,
अंबर बादलोँ से भरा है,
चमक कुछ दिनकर की खो गयी है,
आज शाम जल्दी हो गयी है।
कुछ कुछ अंधेरा होने लगा है,
पथ पर घनेरा होने लगा है,
चूल्हे गरीबोँ के जल उठे हैँ,
बच्चे भी कुछ मचल उठे हैँ,
चिडियोँ के घरौँदे आबाद है अब,
लौट आयी माँ,चूजों का स्वरनाद है अब,
बटोही भी टोह लेकर रुक गये कुछ,
पत्तियाँ मुरझायी पेड झुक गये कुछ,
दूर दिखती थी जो बस्ती अब निगाहोँ से खो गयी है,
आज शाम जल्दी हो गयी है।
–सौरभ कुमार दुबे
सभी का आभार
बहुत सुन्दरता के साथ आपने शाम को बखूबी चित्रण किया ….
खूबसूरत रचना
वाह ! बढ़िया !