कविता

कविता : आज शाम

पहाडोँ का आँचल हरा है,
अंबर बादलोँ से भरा है,

चमक कुछ दिनकर की खो गयी है,
आज शाम जल्दी हो गयी है।

कुछ कुछ अंधेरा होने लगा है,
पथ पर घनेरा होने लगा है,

चूल्हे गरीबोँ के जल उठे हैँ,
बच्चे भी कुछ मचल उठे हैँ,

चिडियोँ के घरौँदे आबाद है अब,
लौट आयी माँ,चूजों का स्वरनाद है अब,

बटोही भी टोह लेकर रुक गये कुछ,
पत्तियाँ मुरझायी पेड झुक गये कुछ,

दूर दिखती थी जो बस्ती अब निगाहोँ से खो गयी है,
आज शाम जल्दी हो गयी है।

–सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

4 thoughts on “कविता : आज शाम

  • प्रवीन मलिक

    बहुत सुन्दरता के साथ आपने शाम को बखूबी चित्रण किया ….

  • सुधीर मलिक

    खूबसूरत रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! बढ़िया !

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