राजनीतिलेख

राजनैतिक मत: एक अनिवार्य पहचान

कल टी-स्टाल पर दो व्यक्ति बात कर रहे थे नोटबंदी पर..एक महाशय नोटबंदी के समर्थन में थे दूसरे विपक्ष में.. बहस काफी गर्म थी और कुछ लोग उतसुकता पूर्वक शामिल थे..जैसे ही अशोक वहां पहुंचा तो उनमे से एक उसकी तरफ घुमा और उससे उसकी राय पूछने लगा..क्या आप नोटबंदी के समर्थन में हैं?? अशोक बोला नहीं ..

ओह तो आप ज़रूर कांग्रेसी या आपिये होंगे..नहीं.. अशोक बोला..

तभी वहां खड़े सभी लोग अशोक को ऐसे देखने लगे जैसे वह कोई एलियन हो…

आजकल हमारे समाज में कुछ ऐसा ही नज़ारा आमतौर पर देखने को मिल जाता है. किसी भी व्यक्ति की पहचान पहले उसके नाम,जाती या कुल से होती थी पर आजकल उसमे एक चीज़ ज़बरदस्ती जोड़ी जा रही है और वह है “राजनैतिक मत”.

अगर आपको समाज का अंग बनकर रहना है तो आपको किसी पार्टी विशेष की मान्यता या उसमे विश्वास होना अनिवार्य है और तो और अगर आपकी किसी भी सामाजिक एव निजी बैठक में समसायिक राजनैतिक विषय पर अपनी कोई राय नहीं है तो आपको एक कम पढ़ा लिखा या नासमझ व्यक्ति समझ जायेगा. ये हमारे समाज की विडम्बना ही हैं जहाँ इस देश में इतने रंग-रूप,विषय और रस व्याप्त है हम सिर्फ एक ही छोर पकडे हुए हैं.आज जहाँ लाइन में कोई आम मजबूर आदमी अपने पैसे लेने की लिए खड़ा है उससे सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक स्वार्थ के लिए बात की जा रही है की वह इसके समर्थन में है या असमर्थन में.किसी को किसी की किसी भी समस्या से कोई लेना देना नहीं है…कुछ लोग इसे चिंतन के रूप में कुछ कौतुहल वश और कुछ टाइम पास के रूप में कर रहे हैं……संवेदनशीलता की कमी साफ़ दिखाई देती है..

परंतु इसी बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जितनी सहायता हो सके लोगो को मुहैया करा रहे हैं पर ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है. मनुष्य जनम बहुत मुश्किल से मिलता है ऐसा हमारे शास्त्रों में भी लिखा है तो हमे अपने जीवन में सारे रास रंग विषयों आदि पर समान धयान देने की ज़रूरत है..राजनीती या कुछ और जीवन का मात्र एक पक्ष ,हिस्सा है इसे दूसरी चीज़ों पर हावी नहीं होने देना चाहिए.

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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