स्त्री की उत्पीड़न की
आवाज टकराती पहाड़ो पर
और आवाज लोट आती
साँझ की तरह
नव कोपले वसंत मूक बना
कोयल फिजूल मीठी राग अलापे
ढलता सूरज मुँह छुपाता
उत्पीड़न कौन रोके
मोन हुए बादल
चुप सी हवाएँ
नदियों व् मेड़ो के पत्थर
हुए मोन
जैसे साँप सूंघ गया
झड़ी पत्तियाँ मानो रो रही
पहाड़ और जंगल कटते गए
विकास की राह बदली
किन्तु उत्पीड़न की आवाजे
कम नहीं हुई स्त्री के पक्ष में
बद्तमीजों को सबक सिखाने
वासन्तिक छटा में टेसू को
मानों आ रहा हो गुस्सा
वो सुर्ख लाल आँखे दिखा
उत्पीडन के उन्मूलन हेतू
रख रहा हो दुनिया के समक्ष
वेदना का पक्ष
— संजय वर्मा “दृष्टी”
125 शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला धार (म प्र )