सामाजिक

बढ़ते बलात्कार : जिम्मेदारी किसकी ?

   बढ़ते बलात्कार : जिम्मेदारी किसकी ?

देश को झकझोर देनेवाले विभत्स निर्भयाकांड के बाद देश में उभनते तीव्र गुस्से ने तब के केन्द्र व राज्यिक सरकारों से लेकर देश की सभी राजनैतिक व अराजनैतिक संस्थाओं को हिलाकर रख दिया था । पहलीबार किसी मुद्दे पर समूचा देश एकसाथ खड़ा नजर आ रहा था । सभी ने एक होकर एक स्वर में यौनापराधों के खिलाफ सख्त कानून लाने की मांग की थी । समय का दबाव और देश का मूड भांपते हुए संसद ने भी बीना देर किए सभी पक्षो की आम सहमति से बलात्कार विरोधी कानून लागू कर दिया ।

देश में लागू इस कानून ने कुछ पल के लिए ही सही पर लोगों के मन में बलात्कार के विरूद्ध लड़ने का एक हौसला जगा दिया था । निर्भयाकांड के बाद देश के बदलते मूड को देखकर ऐसा लगने लगा था,जैसे देश में बढ़ते बलात्कार की घटनाओं पे लगाम कस जाएगा । सायद अब इस तरह की घटनाओं में कमी आएगी ।

पर निर्भया कांड के बाद भी निरंतर एक के बाद एक घटती महिला अत्याचार व यौन शोषन की घटनाओं ने हमारी उम्मीदों पे पानी फेर दिया ।हाल ही में हुए भयावह यौनशोषन की घटनाओं ने हमारी संवेदनहीनता को भी जग जाहिर कर दिया है । देश के हरएक कोने में हर रोज जानें कितनी महिलाएं यौनअत्याचारों का शिकार हो रहीं हैं । पिछले कुछ वर्षो में विदेशी मेहमानों के साथ भी रेप के कई मामले प्रकाश में आएं हैं, जिससे देश की अस्मिता को ठेस पहुंची है ।

अभी चंद रोज पहले ही उत्तर प्रदेश की मैनपुरी में इंसानी दरिदों द्वारा सरे बाजार सैंकड़ों लोगों के सामने एक असहाय महिला के साथ की गई बदसलूकी और मारपीट की घटना ने देश को एक बार फिर सकते में डाल दिया है । मैनपुरी कि यह घटना औरतों पे मर्दानगी दिखानेवाले मर्दों के गाल पर एक शर्मनाक तमाचा है । यह सोचने की बात है कि किस तरह एक सक्षम भीड़ के सामने चंद आवारा नस्ल के दरिंदों ने एक महिला के साथ छेड़छाड़ की और उस छेड़छाड़ का विरोध करने पर उसे लाठी-डंडों से बुरी तरह से मारा-पीटा । पर वहां भीड़ की आकार में खड़े लोग बस नपुंसकों की तरह चुपचाप तमासा देखते रहें । उनमें से एक ने भी इस अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की और ना ही किसी ने उन गुंडों को रोकने की कोशिश की । पूरे वारदात के दौरान लोग असंवेदनशील बने रहें ।

वहीं पिछले दिनों अखबार में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में एक महिला को सिर्फ इसलिए सामूहिक बलात्कार का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने नक्सलवाद को अपनाने से मना कर दिया था ।

आएदिन रोज इस तरह की घटनाएं देश में घट रहीं हैं । कहीं बलात्कार के बाद आंख फोड़ने की घटना का जिक्र है तो कहीं बड़ी निर्ममता से हत्या के वारदात की खबरें सुनने को मिल रहीं हैं । और कहीं-कहीं तो गुप्तांगों में औजार डालने तक जैसी घटनाएं भी घट चुकी हैं ।

देश में तेजी से घटती महिला अत्याचार की इन घटनाओं पे अगर ठीक से गौर किया जाए तो पता चलता है कि आज महिलाएं इस समाज में कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं । स्कुल,कॉलेज,सिनेमा,रेस्त्रां,बस,रेल,आफिस, यहां तक की मंदिर व देवालयों में भी वे सुरक्षित नहीं हैं । हर जगह उन्हे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । घर से कदम बाहर रखते ही उन्हे लोगों की चुभती-चीरती नजरों का सामना करना पड़ता है । कहीं-कहीं तो उन्हे छेड़छाड़ व अश्लील भाषा तक झेलनी पड़ती है । और मैनपुरी की घटना इसका ताजा उदाहरण है ।

समाज में बढ़ती महिला शोषन की ए घटनाएं विश्व समुदाय में खुदको सभ्य कहलाने वाले मानव समाज को आईना दिखाने के लिए काफी है । और अब समय का तकाजा है कि हमें इन सबसे आगे निकलकर एक नए समाज का निर्माण करना होगा । एक ऐसे समाज का निर्माण जहां महिलाओं को मानसिक व शारीरिक यातनाओं से मुक्त होकर खुले आसमान में उड़ने का हक हासिल हो । हमें अब पूरी ताकत से एकजुट होकर एक गौरवमयी समाज का निर्माण करना होगा और समाज में उपेक्षीत-कुण्ठित महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार व सम्मान दिलाना होगा । तब जाकर ये देश सही मायनों में एक विकसित राष्ट्र बन पाएगा ।

आज इस २१वीं शताब्दी के दौर में भी पुरूषोंद्वारा महिलाओं को भोग की वस्तु समझा जाना मनुष्य जाति पे कलंक समान है । और ऐसी सोच के लिए कहीं ना कहीं आप-मैं,हम सभी जिम्मेद्दार हैं । हमने मनुष्य के रूप में सबसे बुद्धिमान प्राणी का ताज पहनकर जिस तरह से एक पुरूष प्रधान समाज का निर्माण किया है वही हमारी सारी समस्यायों की जड़ है । क्योंकि पुरूष प्रधान समाज की आड़ में महिलाओं को कम मर्यादा दिया जाना और उन्हे कमजोर समझा जाना ही महिला अपराधों की मुख्य वजह है ।

अगर हम वास्तव में चाहते हैं कि हमारे समाज में बेटियों को भी बेटों के बराबर का अधिकार मिले तो इसके लिए हमें सबसे पहले स्वयं को बदलना होगा । इस खोखले समाज के उसूलों को बदलना होगा ।

बदलते वक्त के साथ महिलाओं के सर्वांगीण विकाश के लिए अब स्कुल और कॉलेजों में बच्चों को अन्य विषयों के साथ ही महिला सशक्तिकरण का पाठ भी पढ़ाया जाना चाहिए । बच्चों के पाठ्य पुस्तकों में छोटे कक्षों से ही महिलाओं के पारिवारिक व सामाजिक अवदानों तथा संघर्षों का चित्रण अनिवार्य कर देना चाहिए । अभिभावकों को भी चाहिए कि अपने बच्चों को कच्ची उम्र से ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं । ताकी बड़े होकर बच्चें एक आदर्श नागरिक बन सकें । तब जाकर कहीं हमारी बहुं-बेटियां समाज में सम्मान के साथ जी पाएंगी ।

हमें समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की जरूरत है । और आज की यह शदी महिलाओं को समर्पित है । आज जरा सा समर्थन मिलते ही शीशे में बंद लड़कियां आसमानों को चिरते हुए सितारों को चुमने का हुनर पा लेती हैं और अपने मेहनत व लगन से देश व समाज का नाम रौशन कर रही हैं । आज भारत की बेटियां भी लड़कों से आगे निकलकर खेल, राजनीति,साहित्य,सिनेमा,व्यवसाय हर एक क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं और देश को सम्मान दिला रहीं हैं ।

ऐसे में आए दिन हो रहे यौनशोषन की घटनाएं लड़कों के विकृत मानसिकता को दर्शाती हैं । जो समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है । और इन सबसे मुक्ति पाने के लिए अति शीघ्र महिलाओं से जुड़े कानूनों को लेकर जागृती लाने की जरूरत है । जिससे महिलाओं को उनके अधिकारों का और उनसे जुड़े कानूनों का सटीक ज्ञान मिल सके । महिलाओं को अपने विरूद्ध हो रहे अपराधों के शिकायत का अधिक सुलभ अवसर भी प्राप्त होना चाहिए । और उनके द्वारा दायर शिकायत की स्थिति की पूरी जानकारी उन्हे समय-समय पर विभिन्न संपर्क के माध्यमों द्वारा उपलब्ध कराई जानी चाहिए । ताकि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून के अनुपालन में अधिक पारदर्शिता लाई जा सके ।

सामजिक तौर पे भी बलात्कार व छेड़छाड़ के आरोपीयों का पूर्ण बहिष्कार किया जाना चाहिए । समाज में रह रहे ऐसे किसी भी व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों को सामाज से अलग करने का रिवाज होना चाहिए । महिला अपराधों में संलिप्त आरापीयों के साथ सभी प्रकार के सामाजिक व व्यवसायिक लेनदेन तुरंत समाप्त करते हुए युवाओं को महिला अपराधों के खिलाफ कड़ा संदेश देने के जरूरत है । जिससे हमारी बहु-बेटियां देश के हर कोने में खुदको पुर्णतः सुरक्षित महसूस करें ।

मुकेश सिंह
सिलापथार, असम
mukeshsingh427@gmail.com

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl