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लेख- खादी पे राजनीति क्यों

खादी पे राजनीति क्यों

खादी आयोग द्वारा अपने प्रोडक्टस के विज्ञापन हेतु छापे जाने वाले कैलेंडर और डायरीयों पर इस वर्ष खादी के ब्रांड अम्बेसडर नरेन्द्र मोदी की तस्वीर लगा दी गई है । हाल के दिनों में खादी के बढ़ते मांग को देखते हुए आयोग ने अपने कैलेंडर और डायरीयों पर खादी के विकाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले अपने ब्रांड अम्बेसडर मोदी की तस्वीर छापने का साहसिक फैसला लिया । पर कैलेडरों के प्रकाशन के बाद से ही उसपे छपी मोदी की तस्वीर को लेकर राजनीतिक गलियारों में जमकर हंगामा मचा हुआ है । पूरी विपक्ष एकजुट होकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की जिद्द पे अड़ी हुई है । राजनीति के इस बिन सिर-पैर वाले मुद्दे को लेकर सरकार की सहयोगी शिवसेना भी अकारण ही विपक्ष के साथ खड़ी नजर आ रही है ।

दरासल खादी आयोग द्वारा विज्ञापन हेतु हर वर्ष छापे जाने वाले कैलेंडर और डायरीयों पर इस बार खादी के प्रोमशन के अभिप्राय से देश के सबसे बड़े यूथ आईकॉन नरेन्द्र मोदी की तस्वीर छापी गई है । आयोग द्वारा छापे गए इस तस्वीर में मोदी आधुनिक किस्म का चरखा चलाते नजर आ रहें हैं । तस्वीर में सूत काटते मोदी साधराणतः ही किसी का भी ध्यान आकर्षित करने में सफल दिख रहे हैं; जिससे खादी उद्योग को खासा लाभ होने की उम्मीद है ।

मोदी की तस्वीर के कारण खादी उद्योग को होनेवाले लाभ के अनुमान से खादी आयोग अपने मकसद में सफल भी होता दिख रहा है । जिसके लिए आयोग बधाई का पात्र है । पर इसके बावजूद सिर्फ राजनैतिक मतविरोध के चलते विपक्ष के नेता मोदी को निशाना बनाने में जुटे हैं । कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष मोदी पे हमलावर होकर बस यही रोना रोए जा रही है कि बापू के स्थान पे मोदी की चरखा चलाती तस्वीर क्यों छापी गई? उनका मानना है कि इस तस्वीर के जरिये मोदी बापू को रिप्लेस कर रहे हैं और इससे बाबू का अपमान हो रहा है ।

पर क्या विपक्ष के कहे अनुसार वाकई इस देश में बापू को रिप्लेस कर पाना सम्भव है ? देश के प्रति बापू के समर्पन तथा बापू को लेकर देशवासियों के मन में बसे अगाध श्रद्धा को देखकर तो ऐसा नहीं लगता । बापू के प्रति देशवासियों की प्रेम की भावना को देखकर सहज ही यह कहा जा सकता है कि बापू को इस देश में रिप्लेस करना किसी के लिए सम्भव नहीं है और इस देश में बापू को कोई रिप्लेस नहीं कर सकता ।

बापू इस देश के हर एक व्यक्ति के मन में बसते हैं और वे किसी कैलेंडर या तस्वीर के मोहताज नहीं हो सकतें । ऐसे में गांधी जी के सिद्धांतों पर चलनेवाली संस्था खादी एवं ग्रामोद्योग से गांधी जी को अलग करने की बात कहना सिर्फ और सिर्फ मानसिक दिवालीयापन का सबूत है ।

वैसे भी खादी एवं ग्रामोद्योग के कैलेंडरों के बारे में बात की जाए तो जानकारों से पता चलता है कि आयोग द्वारा छपवाए जानेवाले इन कैलेंडरों पर हर वर्ष गांधी जी की ही तस्वीर छापने का कोई अनिवार्य नियम नहीं रहा है और इस वर्ष से पहले भी 1996, 2002, 2005, 2011, 2013 और 2016 के कैलेंडरों में गांधीजी की तस्वीरें प्रकाशित नहीं की गई थीं ।

हां ये और बात है कि उपरोक्त वर्षों के कैलेंडरों में किसी दूसरे नेता की भी तस्वीर नहीं छापी गई थी । और ऐसे में सबसे अधिक राजनैतिक विरोधीयों के निशाने पे रहनेवाले नरेंद्र मोदी की तस्वीर उनके विरोधीयों को असहज करने के लिए काफी है ।

पर विपक्षद्वारा हवा दिए जा रहे इस मुद्दे को लेकर नरेन्द्र मोदी किसी भी एंगल से जिम्मेदार नहीं दिखते । अगर खबरों की माने तो एक स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने सोच मसझकर ही खादी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रधानमंत्री के चरखा चलाते तस्वीर का प्रयोग किया है । और लोकप्रियता की शिखर को चुमने वाले देश के इस सशक्त नेता की तस्वीर का प्रयोग कर आयोग अपना ही हित साध रही है; ना कि इससे मोदी को कोई व्यक्तिगत लाभ पहुंच रहा है ।

प्रधानमंत्री की तस्वीर छापने को लेकर आयोग ने तर्क देते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री की चरखा चलाती यह तस्वीर 18 अक्टूबर, 2016 की है जब प्रधानमंत्री ने खादी के उन्नयन के लिए पंजाब में 500 महिलाओं को चरखा दिया था और राष्ट्रपिता के सपनों को साकार बनाने का बीड़ा उठाया था । इससे पहले 1945 में गांधी जी के कहने पर कामराज ने 500 चरखे बांटे थे और इन 70 सालों में किसी भी प्रधानमंत्री ने खादी को लेकर इतना उत्साह नहीं दिखाया ।

मोदी हर मोर्चे पर गांधीजी के सपनों को साकार करने में डटे हुए हैं । वे देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो खादी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर कोशिश कर रहे हैं । महात्मा गांधी के खादी के माध्यम से गांव गांव में रोजगार दिये जाने के विज़न के साथ मोदी खादी को भी बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं । और यह उनकी मेहनत व लोकप्रियता का ही नतीजा है कि आज उनकी ओर से खादी का प्रमोशन किए जाने के बाद खादी ग्रामोद्योग आयोग के कारोबार में जोरदार इजाफा हुआ है । रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम समेत कई मंचों पर पीएम मोदी की ओर से खादी पहनने की अपील किए जाने के बाद से इसकी मांग में बड़ा इजाफा हुआ है।

बीते साल 18 अक्टूबर को लुधियाना में एक रैली के दौरान भी उन्होंने ‘खादी फॉर नैशन और खादी फॉर फैशन’ का नारा दिया था । और इसके अगले ही रविवार यानी 23 अक्टूबर को दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित खादी ग्रामोद्योग के आउटलेट में बिक्री चार गुना बढ़ गई थी और सिर्फ एक दिन में 1.08 करोड़ रुपये के सामान की बिक्री हुई । यह खादी प्रोडक्टस की अब तक की सबसे ज्यादा सेल थी । गौरतलब है कि 22 अक्टूबर को यही सेल महज 27 लाख रुपये की ही थी।

इस तरह प्रधानमंत्री की सक्रियता से वित्त वर्ष 2015-16 में 1,510 करोड़ रुपये के खादी उत्पादों की सेल हुई, जबकि 2014-15 में यह आंकड़ा महज 1,170 करोड़ रुपये था। इस तरह एक साल के भीतर खादी प्रॉडक्ट्स की सेल में 29 प्रतिसत का इजाफा हुआ है। जबकी 2014-15 में खादी प्रॉडक्ट्स की सेल में 8.6 प्रतिसत की ही ग्रोथ हुई थी । मौजूदा वित्त वर्ष में खादी ग्रोमोद्योग आयोग के प्रॉडक्ट्स में 35 प्रतिसत इजाफा होने का अनुमान है । यही नही बल्कि खादी के लगातार बढ़ते मांग से उत्साहित आयोग ने 2018 में 5,000 करोड़ रुपये की सेल का टारगेट तय किया है । खादी प्रॉडक्ट्स की ऑनलाइन सेल को प्रमोट करने के लिए आयोग ई-कॉमर्स कंपनियों से भी बातचीत कर रहा है ।

हाल ही में प्रकाशित मीडिया रिपोर्टस के अनुसार खादी को लेकर पीएम मोदी की अपील का जादू इस कदर लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है कि नोटबंदी के बावजूद दिसंबर में खादी एवं ग्रामोद्योग की वस्तुओं की बिक्री में सवा नौ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है ।

आयोग के चेयरमैन वी. के. सक्सेना के अनुसार 1000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर किए जाने के बावजूद आयोग की बिक्री प्रभावित नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद शुरुआती दो-तीन दिन में बिक्री में कमी देखी गई लेकिन डिजिटल भुगतान के विभिन्न माध्यमों को प्रोत्साहन दिए जाने के बाद इसमें जल्द ही सुधार हो गया । और इसका पूरा श्रेय हमारे प्रधानमंत्री मोदी को ही जाता है ।

अब विपक्ष चाहे माने या न माने पर यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि नरेंद्र मोदी यूथ आइकन हैं । वे वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं । उनकी तस्वीर से देश का युवा वर्ग आकर्षित होता है । लोग उनकी बात सुनते हैं । और यह उनकी लोकप्रियता का ही नतीजा है कि आज वर्षो बाद खादी उद्योग पुणर्जीवित हो उठा है ।

ऐसे में एक स्वायत्तशासी संस्थान द्वारा अपने प्रोडक्टस के प्रमोशन के लिए जारी किए गए कैलेंडर और डायरी पर किसी भी लोकप्रिय व्यक्ति की तस्वीर छापने का उसे पूरा अधिकार है । और इसके लिए तस्वीर छपे व्यक्ति को निशाना बनाना इर्ष्या का प्रतिफलन मात्र है । ऐसे में विपक्ष को भी चाहिए कि वे मोदी को बेकार में निशाना बनाने के बजाय खादी के विकाश के लिए उनका सहयोग करें और गांधी के सपनों को साकार बनाने में अपनी भागीदारी निभाएं ।

मुकेश सिंह
mukeshsingh427@gmail.com

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl