राजनीति

सेना में रोटी के साथ सम्मान भी जरूरी

बड़ी अजीब परंपरा है इस देश की । जहां एक ओर हम बड़े ठाट से सैन्य दिवस मनाते हुए अपने वीर जवानों का गुणगान कर रहें हैं, तो वहीं दूसरी ओर हमारे सैनिक भाई अपनी लाचारी सोशल मीडिया पर शेयर करने को मजबूर हो रहें हैं । देश में पिछले कुछ दिनों से जवानों को खराब खाना दिये जाने, उनसे जूते साफ करवाने व अफसरों के जानवरों को घूमाने की बातें काफी चर्चा में है । जो हमारे लिये बहुत शर्मनाक है।

हाल ही में बीएसएफ के जवान तेज बहादुर ने फेसबूक पर एक वीडियों जारी कर खराब खाने की शिकायत की थी । अपनी वीडियो में उन्होने जवानों को दिये जानेवाले खाने का नमूना भी पेश किया था और आरोप लगाया था कि सरकार द्वारा पूरा राशन दिये जाने के बावजूद बड़े अफसर सारा माल बेच खाते हैं और देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले सिपाहीयों को घटीया खाना मुहैया करवा रहें हैं, जिससे सेना के जवानों की सेहत और मनोबल पर असर पड़ रहा है । इसके लिए उन्होने प्रधानमंत्री से मदद की गुहार भी लगाई थी । जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने संज्ञान में लेते हुए उपयुक्त कार्यवाई के लिये सक्रिय कदम उठायें हैं ।

अभी तेज बहादूर का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि आर्मी के लांस नायक यज्ञ प्रताप सिंह ने भी अपनी शिकायत सोशल मीडिया में रख दी । अपनी शिकायत में उन्होने कहा कि उनसे अफसर अपना जूता साफ करवाते हैं व कुत्ते घुमवाते हैं । और अगर ये बात सच है तो यह देश का दुर्भाग्य है कि देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले वीरों के साथ ऐसा अमानविक बर्ताव किया जा रहा है । जो किसी भी कीमत पर क्षमा योग्य नहीं हो सकता ।

देश के लिए यह चिंता का विषय है कि तेज बहादुर द्वारा साहसपूर्ण कदम उठाये जाने के बाद से ही सेना व अर्द्धसैन्य बलों के कई और जवानों ने अपनी भी शिकायत दर्ज करायी ।जिसका सीधा-सीधा अर्थ है कि कहीं न कहीं अफसरों के कार्यकलापों में कमी है, जिससे जवानों में गुस्सा है । और उनके गुस्से का यह लावा अब ज्वालामुखी बनकर फुटने को बेकरार नजर आ रहा है । जो देश व शासन सभी के लिए हानिकारक है ।

वैसे भी देश में अनुशासन का दूसरा नाम ही भारतीय सेना है । हमारी सेना मानवता की सेवा की सबसे बड़ी मिसाल भी है । अब चाहे बात बद्रीनाथ, केदारनाथ या श्रीनगर की हो अथवा देश का कोई अन्य हिस्सा, पर देश में जब कभी कहीं भी बाढ़ या कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो हमारी सेना ही लोगों की जिन्दगी बचाने का काम करती है। उस वक्त सेना यह नहीं सोचती कि यह लोग कौन है। हमारे लिये यह गर्व की बात है कि पूरे विश्व में अनुशासन,आचरण व सामान्य नागरिकों के प्रति व्यवहार के मानकों में भारतीय सेना प्रथम पंक्ति में आती है। विश्व में शांति रक्षक बलों में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले हमारे वीर जवान ही हैं । हमारी सेना के जवानों ने अपने आचरण और व्यवहार से विश्व को जीतने में सफलता पायी है। हमारे जवानों ने यमन में देश के हजारों नागरिकों के फँसे होने के दौरान भी अपना शौर्य दिखाया था और अपने पराक्रम से भारतीय नागरिकों को देश में सही सलामत लेकर आयें थे । इतना ही नहीं बल्कि हमारे जवान सदैव ही देश की रक्षा के लिए सीमा पर तत्पर हैं । जब भी दुश्मनों के नापाक कदम हमारी पवित्र भूमि पर पड़े हैं, हमारी सेना के जवानों ने दुश्मन का सीना छलनी कर उन्हें विफल कर दिया है ।

अपने शौर्य प्रदर्शन के साथ ही हमारी सेना ने और भी कई कमाल किये हैं जिनके बारे में जानकर आपको अपनी सेना पर और अधिक गर्व महसूस होगा । दरासल सेना के सामने इस समय आतंकवाद और घुसपैठ का मुकाबला करना बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसके लिए उसे बेहतरीन हथियारों की जरूरत है। लेकिन हमारी सेना के पास आज हथियारों की कमी है। हाल ही में इंसास (इंडियन स्‍मॉल आर्म्स सिस्टम) राइफलों की जगह आने वाले लगभग पौने दो लाख हथियार खरीदने की निविदा भी रद्द हो गई और सटीक मार करने वाले हथियारों की जरूरत शिद्दत से सामने आई है ।पर सरकार की तरफ से हथियारों के संदर्भ में कोई सहायता ना मिलने के कारण हमारे जवानों ने खुद ही इनमें बदलाव करने की सोची । और हमारे काबिल जवानों ने हथियारों के आने का इंतजार करने के बजाय, खुद ही पुरानी इंसास राइफलों में बदलाव कर उसकी मारक क्षमता बेहतरीन कर ली।

ऐसे में अगर हमारे जवानों के साथ भेदभाव व अन्याय होता है तो यह हम सबके के लिये डूब मरने वाली बात है । हमें चाहिये कि हम उनके लिये न्याय की मांग करें । उनके साथ जो भेदभाव हो रहा है उसपर तुरंत एक्सन लेने की जरूरत है, ना कि उन्ही पे अनुशासन के नाम रोक लगाने की । यदि वाकई में हमारी सेना अथवा अर्द्धसैनिक बलों के किसी जवान के अनुशासन में कोई कमी हो, तो बेहिचक उसे सजा दी जानी चाहिये, पर यदि वह सोशल मीडिया के जरिये अपने अधिकारियों की कारगुजारी को उजागर करता है और उस पर सख्ती बरती जाती है या फिर जवानों के सोशल मीडिया और स्मार्टफोन पर रोक लगाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है, तो फिर यह अनुचित है । हां, बात अगर देश की सुरक्षा व गोपनीयता की है तो इसे स्वीकार किया जा सकता है, अन्यथा नहीं । अगर सरकार या संबंधित बल के अधिकारी जवानों के निजी जीवन पर रोक लगाने की कोशिश करते हैं, तो यह अन्याय की श्रेणी में आयेगा । और ऐसी स्थिती में इसका विरोध आवश्यक है ।

खबरों की मानें तो सोशल मीडिया में मचे घमासान के बाद सरकार जागी है और उसने जवानों की मदद के लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया है, जिस पर जवान अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं और उनकी शिकायत से जुड़ी सभी जानकारीयों को संबधित विभाग द्वारा गोपनीय रखा जायेगा । किसी कारणवस शिकायत निवारण के तरीके से संतुष्ट नहीं होने पर जवान दूसरे ढंग से शिकायत करने को स्वतंत्र हैं।

अक्सर कहा जाता है कि सेना का सबसे बड़ा शस्त्र उसका मनोबल होता है। और यह मनोबल शस्त्रों से नहीं बल्कि सवा सौ करोड़ देशवासियों के उनके पीछे खड़े होने से आता है। जिसे हमें टुटने नहीं देना है । किसी भी विकट परिस्थिती में हमें आगे आकर अपनी सेना के साथ खड़ा होना होगा । जिससे वे खुदको अकेला और असहाय ना समझे । उन्हे ऐसा महसूस कराना होगा कि वे जिनके लिये अपना सर्वस्व कुर्बान कर जान हथेली पर लेकर देश की सीमा पर खड़े हैं; वे भी उनके लिए उनके कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं ।

हमें चाहिये कि देश के सच्चे सपूतों को पूरा सम्मान दें । सैनिकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि उन्होंने देश लिए ही अपना सर्वस्व दांव पर लगा रखा है । आज अक्सर सेना में जवानों की कमी का रोना रोया जाता है तो उसका कारण भी सायद यही है । जब जवानों को अपना सब कुछ छोड़कर सीमा पर विषम परिस्थितियों में काम करने का फल ऐसा मिलने लगेगा तो भला क्यों कोई नौजवान सेना में जाना चाहेगा ?

जैसा कि हम जानते हैं देश में कुछ नियम ब्रिटिश काल से ही चले आ रहे हैं जो उन्होंने अपनी सुविधा के लिए बनाये थे । पर आज हमारे देश की सेना में हमारे लिए हमारे जवान लड़ते हैं तो ऐसे में उन्हें पूरा सम्मान दिया जाना चाहिये । आज जब देश की सेना पर हम सभी गर्व कर रहें हैं, तो अच्छा होगा कि अब देश में प्रचलित इस तरह के सभी कानूनों से पीछा छुड़ा कर हमारे बहादुर सैनिकों को पूरा सम्मान दिया जाये जिससे सेना में जाने के लिए युवक लालायित रहें और सेना को अधिकारियों और जवानों की कमी न हो ।

मुकेश सिंह
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मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl