मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

मापनी-2122 2122, 2122 212,

समांत- आने, पदांत – के लिए

घिर गए जलती शमा में, मन मनाने के लिए।

उड़ सके क्या पर बिना फिर, दिल लगाने के लिए।

राख़ कहती जल बनी हूँ, ख्वाइसें इम्तहान में-

देख लो बिखरी पड़ी हूँ, पथ बताने के लिए॥-1

समांत- आम, पदांत – अब

कौन किसका मानता है, देखते अंजाम सब।

उड़ रहे हैं आ पतिंगे, प्रेम का परिणाम रब।

नयन तो सबका सजग है, देखता कोई नहीं-

बिन पिए ही गिर रहे हैं, कह शमा लव जाम कब॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ