बाल कथा – डर के आगे जीत
“दादी माँ; माँ कहती हैं हमलोगों को बचपन में हमारी नानी माँ या दादी माँ कहानी सुनाया करती थी । मैं तो आपके साथ रहता नहीं हूँ तो आपसे कभी कहानी नहीं सुन पाया हूँ , क्या आप मुझे कहानी सुना सकती हैं ?”
गोलू के प्यार भरे अनुरोध को धरा टाल नहीं सकी उसने गोलू को अपनी गोद में लिटाते हुए कथा प्रारंभ की :—
“बेटा गाय एवं बछड़ों का झुंड लेकर हमारा नौकर अक्सर जंगल की ओर उन्हें चराने जाया करता था । एक दिन एक दरवाजे पर शेर आया शेर आया कि चर्चा हमारे दादा जी अपने पड़ोसियों के साथ कर करे थे । उस दिन सभी गायें जंगल के रास्ते जाने के बदले दरवाजे पर ही बैठी रहीं । दादा जी को बड़ा आश्चर्य हुआ ! उन्होंने फिर मुझसे बातें करते हुए अपना अनुभव हमें सुनाने लगे ।”
दादा जी बोले ; “बिटिया भय का भूत जानती हो? हमने ना में सिर हिलाया , फिर उन्होंने कहा जंगल में एक बार भैंसों के झुंड से एक भैंस का बच्चा बिछड़ गया ,तभी सामने से शेर आते देख कर उस भैंस के बच्चे को अपनी माँ की कही बात याद आई ।
“बेटा जिंदगी में कभी अगर मुसीबत आन पड़े तो खुद को अकेला कभी मत समझना ।तेरे पीछे पूरे परिवार की ताकत खड़ी है ,यह हमेशा याद रखना । बस फिर क्या था ; भैंस के बच्चे ने अपने खूरों से जमीन को खुरचते हुए प्रहार की मुद्रा में शेर के आगे डट कर खड़ा हो गया एवं गुस्से में जोर से चिल्लाया। थोड़ी ही देर में भैंस के बच्चे को बचाने भैंसों का झूँड आ गया ,एवं शेर घबरा कर वापस जंगल में लौट गया।”
“तो जानते हो गोलु ! यह कथा मेरे दादा जी हमें सुनाये और फिर आश्चर्य ! सभी गायें फुर्ती से उठकर जंगल के रास्ते चारे की तलाश में चल दी ।”
“अरे वाह दादी आपने तो कथा में भी कथा कह दी ; सच में एकता की ताकत एवं खुद से बलवान से भी वक्त पड़ने लड़ने एवं डटे रहने की सीख दे डाली ।”
“एक सीख तो तुम समझे ही नहीं ।”
“क्या दादी माँ ?”
“बेटे इंसानों की भाषा एवं प्यार पेड़-पौधे एवं पशु-पक्षी भी समझते हैं ।”
— आरती राय