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परमात्मा और हम चेतन होने के कारण सजातीय हैं:  स्वामी चित्तेश्वरानन्द

आर्यसमाज प्रेमनगर, देहरादून का दो दिवसीय वार्षिकोत्सव आज दिनांक 22-12-2019 को सोल्लास आरम्भ हुआ। प्रातः पं0 वेदवसु  शास्त्री जी ने समाज की यज्ञशाला में यज्ञ सम्पन्न कराया जिसमें स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री, सहारनपुर तथा आचार्य डा. धनंजय जी, श्री सुनील शास्त्री सहित देहरादून जनपद की आर्य उपप्रतिनिधि सभा के प्रधान श्री शत्रुघ्न मौर्य, मंत्री श्री भगवान सिंह राठौर, श्री जितेन्द्र सिंह तोमर आदि अनेक महानुभाव उपस्थित थे। गुरुकुल पौंधा देहरादून के लगभग पचास ब्रह्मचारी भी प्रातःकालीन यज्ञ में सम्मिलित थे। यज्ञ की समाप्ति के बाद घ्वजारोहण हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रिय प्रार्थना का मन्त्र एवं उसका पद्यानन्द भी गाया गया। इसके बाद जयति ओ३म् ध्वज व्योम विहारी’ गीत आर्य भजनोपदेशक श्री मुकेश कुमार जी ने गाया। यज्ञ का समापन होने पर आचार्य डा. धनंजय जी ने श्रोताओं व सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि संसार को श्रेष्ठ बनाना आर्यसमाज का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी के प्रमुख शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द जी ने स्वामी दयानन्द के स्वप्नों के अनुरूप हरिद्वार के निकट कांगड़ी गांव में वैदिक शिक्षा का केन्द्र गुरुकुल स्थापित उनके स्वप्न को साकार रूप दिया था। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने गुरुकुल को सफल बनाने में अपनी सारी शक्ति लगा दी थी और गुरुकुल को सफलताओं के शिखर पर पहुंचाया था। आचार्य धनंजय जी ने स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी का परिचय भी दिया। उन्होंने बताया कि स्वामी जी अपनी सरकारी सेवा के दिनों से ही वेद पारायण यज्ञों को करवाते आ रहे हैं। स्वामी जी ने अनेक अवसरों पर वृहद गायत्री यज्ञ भी किये हैं। एक बार एक करोड़ गायत्री मन्त्र की आहुतियों से महायज्ञ भी किया है। स्वामी जी लम्बी लम्बी अवधि तक मौन व्रत भी रखते हैं। आचार्य धनंजय जी ने स्वामी जी को व्याख्यान के लिये आमंत्रित किया।

अपने व्याख्यान के आरम्भ में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जो व्यक्ति यज्ञ करता व यज्ञ में उपस्थित होता है, यह उसके सौभाग्य से होता है। स्वामी जी ने ईश्वर का ध्यान करने की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमें विचार करना चाहिये कि क्या हम अपने परिवार के साथ सदा से हैं और सदा रहेंगे? क्या मैं सदा जीवित रहूंगा? स्वामी जी ने कहा कि इन प्रश्नों का उत्तर है नहीं। हमें हमारा शरीर परमात्मा से मिला है। माता-पिता सन्तान को जन्म देते हैं परन्तु वह अपनी सन्तान के शरीर की रचना नहीं करते। उन्होंने कहा कि गर्भवती माता को तो यह भी पता नहीं होता कि उसके गर्भ में पुत्र का शरीर बन रहा है या पुत्री का। जन्म होने पर ही माता-पिता को ज्ञात होता है कि जन्म से पूर्व गर्भ में पुत्र था या पुत्री। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा हमारे सभी जीवों के सभी कर्मों को जानते हैं। नासा, अमेरिका का उल्लेख कर उन्होंने बताया कि नासा के अनुसार हमारे ब्रह्माण्ड में 3 खरब से अधिक सौर मण्डल है। उन्होंने कहा कि किसी मनुष्य को परमात्मा का अन्त नहीं मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी समस्त सृष्टि परमात्मा के चार पादों में से एक पाद में है। 3 पादों में अमृतमय परमात्मा विद्यमान है। परमात्मा सृष्टि को बनाता है। हम यहां बैठे हुए सभी लोग आत्मायें हैं। हम शरीर नहीं हैं। हम सब मनुष्य हैं। स्वामी जी ने कहा कि अनादि काल से कर्मानुसार हमारे भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म होते आ रहे हैं। स्वामी जी ने इस जन्म में मनुष्यों के गोत्र, कुल, माता-पिता आदि की चर्चा की और कहा कि हर जन्म में यह बदल जाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य अल्पज्ञ है और यह अतीत की बातों को भूल जाता है परन्तु परमात्मा नहीं भूलता। उन्होंने कहा कि मनुष्य का शरीर छूटने तक मनुष्य के सारे सम्बन्ध सच्चे होते हैं।

स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि हमारा कर्तव्य अपनी सन्तानों को योग्य बनाना है। स्वामी जी ने श्रोताओं को माता-पिता के उपकार बताये और कहा कि उनकी सेवा करना प्रत्येक सन्तान का कर्तव्य है। वैदिक विद्वान स्वामी जी ने कहा कि एक दिन हमारा शरीर आत्मा से छूट जायेगा। तभी तक हमारा अपने परिवार व संसार के लोगों से सम्बन्ध है। परमात्मा ही हमारे जन्म-मरण का कारण है। हम शरीर नहीं आत्मा हैं। आत्मा अनादि सत्ता है। समय के साथ व जन्म-जन्मान्तर में आते-जाते हुए हमारी उन्नति व अवनति होती रहती है। परमात्मा सभी जीवों को उनके कर्मों के फल प्रदान करता है। स्वामी जी ने कहा कि भगवान किसी से दूर नहीं है। वह सबके भीतर बाहर उपस्थित है और सबमें ओत-प्रोत है। वह हमारा निकटतम है। ईश्वर सर्वत्र व्यापक है। हमारा ईश्वर का व्याप्य-व्यापक संबंध है। स्वामी जी ने बताया कि परमात्मा एक चेतन सत्ता है। परमात्मा न्यायकारी भी है। परमात्मा सबको उनकी आवश्यकताओं के पदार्थों को देता है। स्वामी जी ने प्रश्न किया कि परमात्मा यदि है तो वह दीखता क्यों नहीं है? उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर दिया कि परमात्मा ने आंख प्रकृति व भौतिक पदार्थों को देखने के लिये बनाई है। परमात्मा आंख या इन्द्रियों का विषय नही अपितु आत्मा का विषय है। परमात्मा और हम चेतन होने के कारण सजातीय हैं। परमात्मा अनादि, नित्य व अमर है और हममें भी परमात्मा के यह गुण हैं। स्वामी जी ने आत्मा और परमात्मा के अन्तर को भी बताया। उन्होंने कहा कि आत्मा परमात्मा का अंश नहीं है। इसका कारण व प्रमाण यह है कि जीवात्माओं में परमात्मा जैसे गुण नहीं है।

स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा सबका साथी है। परमात्मा सबका परम पवित्र है। परमात्मा सभी प्राणियों के सभी कर्मों का साक्षी है। परमात्मा हमें ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, पराक्रम, निर्भीकता आदि गुणों को देता है। हमें अपने कर्मों व व्यवहार को सुधारना है। परमात्मा सदैव हमारे साथ है। हमें परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ना है। हमारा परमात्मा अनन्त ज्ञान वाला है। परमात्मा सर्वशक्तिमान भी है। परमात्मा इस अखिल सृष्टि का नियमन कर रहा है। स्वामी जी ने इस सृष्टि का उपादान कारण सत्व, रज व तम गुणों से युक्त प्रकृति को बताया। स्वामी जी ने दर्शन ग्रन्थों के आधार पर सृष्टि-रचना की पूरी प्रक्रिया को भी बताया। उन्होंने सृष्टि की विविधता एवं विशेषताओं का भी वर्णन किया। विद्वान वक्ता ने शरीर में भोजन से रस, रक्त, मज्जा आदि बनने पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों के आलस्य प्रमाद से वेद विलुप्त हो गये थे। ऋषि दयानन्द ने वेदों का उद्धार किया है। हमें प्रतिदिन परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिये कि वह ऋषि दयानन्द जैसी पवित्र आत्माओं को इस संसार में पुनः भेंजे जो वेदों का प्रचार कर देश व समाज में विद्यमान अविद्या व अन्धविश्वासों को समूल नष्ट कर दें। स्वामी जी ने यह भी बताया कि संसार के समस्त मनुष्य व प्राणी एक ही परमात्मा की सन्तानें हैं। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमें परम पिता परमात्मा को जानना है। उन्होंने ईश्वर से इस कार्य के लिये सबको शक्ति देने की प्रार्थना की। इसी के साथ स्वामी जी ने सबका धन्यवाद करते हुए अपने वक्तव्य को विराम दिया।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे आचार्य डा. धनंजय जी ने कहा कि परमात्मा की बनाई यह सृष्टि हमारे कल्याण के लिये है। कुछ दुर्दान्त लोगों ने मनुष्यों को लड़ना सिखाया है। सभी झगड़ों का केन्द्र परमात्मा को मानने वाले भोले-भाले लोगों को बनाया जाता व उन्हें पीड़ित किया जाता है। उन्होंने कहा कि मत-मतान्तरों के लोग परमात्मा को चैथे तथा उससे ऊपर सातवें आसमान पर बताते हैं। आचार्य जी ने कहा कि वास्तविकता यह है कि परमात्मा प्रत्येक मनुष्य के हृदय में है। हमें परमात्मा को जानने का प्रयत्न करना चाहिये। आचार्य जी ने मनुस्मृति में महाराज मनु द्वारा दिये धर्म के दस लक्षणों धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय आदि की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि हमें अपनी बुद्धि की तर्क करने की क्षमता को विकसित करना चाहिये। हमें सद्ज्ञान की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करना चाहिये। विद्वान आचार्य डा. धनंजय जी ने कहा कि मत सम्प्रदायों के लोग देश समाज के लोगों में भेद भ्रम फैलाकर समस्यायें उत्पन्न करते हैं।

आर्यसमाज के वार्षिकोत्सव में पधारे सहारनपुर के विद्वान पं. वीरेन्द्र शास्त्री ने अपने वक्तव्य का आरम्भ श्रोताओं द्वारा गायत्री मन्त्र का उच्चारण करवाकर किया। उन्होंने कहा कि परमात्मा किसी प्रकार के परिवर्तन को प्राप्त नहीं होता। उसके ज्ञान में भी कभी परिवर्तन, वृद्धि व ह्रास, नहीं होता है। परमात्मा का ज्ञान वेद है। आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी ने परमात्मा को जानने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि हम केवल परमात्मा को मानते हैं परन्तु उसके सत्यस्वरूप को जानते नहीं है। ऋषि दयानन्द ने गहराई से इस विषय का चिन्तन किया था। उन्होंने परमात्मा को मानने से पूर्व परमात्मा के यथार्थस्वरूप को जानने की प्रेरणा की थी। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा हमारे अति निकट है परन्तु हम अपने विचारों व भावनाओं से परमात्मा से दूर हैं। हमें परमात्मा को जानने का प्रयास करना चाहिये। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज के लोग भी भौतिकता की ओर बढ़ रहे हैं। आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि जितना ईश्वर को जानोंगे उसकी उपासना करोगे, उतना जीवन सफल होगा। आचार्य जी ने ईश्वर के ध्यान ‘‘सन्ध्या” की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग पांच से पन्द्रह मिनट तक सन्ध्या करते हैं। इसके बदले में परमात्मा से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष मांगते हैं। उन्होंने कहा कि मांगी गई यह चीजें छोटी बातें नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सन्ध्या का अर्थ साधना करना है। सन्ध्या का वास्तविक अर्थ परमात्मा को जानना है। उन्होंने याद दिलाया कि ऋषि दयानन्द प्रतिदिन प्रातः सायं न्यूनतम एक-एक घंटा सन्ध्या करने का विधान किया है। पं. वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि भौतिक ज्ञान की दृष्टि से आज देश में विद्वान अधिक हैं। बुद्धि की दृष्टि से पहले लोग अधिक बुद्धिमान होते थे। उन्होंने कहा कि आज का मनुष्य भौतिक जगत में जी रहा है। आचार्य जी ने यह भी कहा कि हमारे पूर्वजों को हमारे समान भौतिक साधनों की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने बताया कि योगाभ्यास से तनाव दूर होता है। आचार्य जी ने कहा कि आजकल लोगों का मन बिगड़ा हुआ है। उन्होंने श्रोताओं को ईश्वर का ध्यान करने की प्रेरणा की। परमात्मा ने हमें बहुत से साधन व सम्पत्तियां दी हैं। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि सत्य सिद्धान्तों का पालन कर जीवन व्यतीत करें।

आचार्य धनंजय जी ने कहा कि हमें स्वयं को जानना है। इससे हमारे सभी दुःख दूर हो जायेंगे। आचार्य जी ने कहा कि हम असावधानीपूर्वक कार्य करते हैं तो उसका बुरा परिणाम सामने आता है। उन्होंने जीवन में वैदिक नियमों का पालन करने की प्रेरणा की जिससे हम दुःखों से बचे रहेंगे। आचार्य जी ने शरीर को व्याधियों से बचाये रखने के लिये अपने जीवन को नियमित, नियंत्रित तथा अनुशासित करने की भी प्रेरणा की। आचार्य जी ने यह भी कहा कि यजमान वह होता है जो यज्ञ के प्रति समर्पित होता है। इसके बाद यजमानों को आशीर्वाद दिया गया। आशीर्वाद की प्रक्रिया सम्पन्न करने के बाद ओ३म् ध्वज’ फहराया गया। राष्ट्रिय प्रार्थना हिन्दी पद्य सहित गायी गई। प्रसाद वितरण हुआ जिसके बाद प्रेमनगर के बाजार में आर्यसमाज द्वारा एक शोभायात्रा निकाली गई। कल दिनांक 23-12-2019 को आर्यसमाज प्रेमनगर के वार्षिकोत्सव का समापन होगा जिसमें स्वामी श्रद्धानन्द जी का बलिदान दिवस भी आयोजित किया जायेगा। मुख्य वक्ता सहारनपुर के आर्य विद्वान आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी होंगे। आर्यसमाज ने सभी बन्धुओं को इस अवसर पर आमंत्रित किया है। ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य