यह है ममता की राजनीति
यह बात अबतक
समझ में नहीं आई है
कि डायरेक्टर
रामानंद सागर को
‘नारद’ ही क्यों बनने पड़े?
नारद को गाँव में
‘कूटना’ कहा जाता है,
क्यों?
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रामायण में यह बात
स्पष्ट नहीं हो सकी
कि कैकेयी महान थी
या मंथरा !
कोई बताएंगे ?
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‘दानपेटी’
धार्मिक स्थलों में नहीं,
अपितु ‘अस्पतालों’ में
रखनी चाहिए,
क्योंकि गरीब मरीज
महँगे अस्पतालों की
फीस नहीं भर पाते हैं ?
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क्या प्रति 5 साल में
सरकार बदलनी चाहिए ?
क्योंकि पानी भी
एक जगह जमी रहने से
सड़ांध दुर्गंध फैलाती है !
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अच्छा होता !
जापान के नए राजा
सम्राट नारुहितो
राजगद्दी न सँभाल
वहाँ ‘लोकतंत्र’
घोषित कर देते !
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एक
खरबूजा (विपक्ष) को
देखकर,
दूसरा
खरबूजा (सत्तापक्ष) भी
रंग
बदलने लगता है !
यह है ममता की राजनीति !
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