लघुकथा

मिर्ची लग गई

रमन का लंच के समय अचानक ही आज फोन आ गया और एकदम सकपकाते हुए बोले – कई दिन हो गए, सोच रहा था कि कैसे कहूँ !! पर आज तो ज़ुबान ही नहीं मानो आत्मा भी जल गई मेरी लक्षिता |’

‘ मन-ही-मन मैं मुस्कुरा रही थी और सोच रही थी कि आखिर छटपटा ही गए जनाब ! किन्तु चेहरे पर प्रश्नसूचक भाव लेकर अनभिज्ञ दृष्टि के साथ मैंने कहा कि क्या हुआ किससे जुबान जल गई तुम्हारी ? बताओ तो सही !’

रमन- ‘ अरे लक्षिता तुमसे नाराज़ होकर मैं एक हफ्ते से बाहर से खाना मंगाकर खा रहा हूँ, शो ऑफ के चक्कर में, पर आज इतनी मिर्च लग गई कि हारकर मुझे तुमसे बात करनी पड़ी |’

‘ अरे ! तुम्हें पता तो है तीखे का चलन है | बाहर लोग खाते भी तीखा हैं और निभाते भी तीखा हैं | तुम्हें तो पहले ही अक्ल आ जानी चाहिए थी, अब लग गई मिर्ची तो आ गए वापिस |’ – लक्षिता ने जवाब दिया |

‘ अरे बाबा ! मैं जला जा रहा हूँ भीतर से और तुम हो कि …….कुछ  तो उपाय करो’  – रमन बोला

‘चटपटा खाने-खिलाने का शौक है तो मिर्ची खुद को भी तो लग सकती है, उससे कैसे और कब तक बचोगे ! मियाँ जी सहने की भी हिम्मत रखो | सादा जीवन जीकर, सादा भोजन खाकर तुम्हें तो कभी स्वाद ही न आता था,  बस चल दिए लाग-लपेट वाले अनगिनत मसालों का स्वाद लेने |  जिन्होने खिलाया उन्हें क्यों नहीं फोन लगाया तुमने !’ – लक्षिता हँसते हुए बोली |

‘अरे ! भाई  पहले ही तन-बदन आत्मा जल रही है, क्यों तुम भी इतनी मिर्ची उढ़ेल रही हो | कहीं तुम्हारी भी तो किसी तीखी मिर्च वालों से दोस्ती तो नहीं हो गई इतने दिनों में ! सच-सच बताना ! जल्दी बोलो, कहीं तुमने भी तो नहीं खाया इसे !’ – रमन ने घबराते हुए कहा |

लक्षिता तपाक से बोली –  ‘न बाबा न ! भगवान बचाए |  न हम ऐसा तीखा खाना खाते हैं और न ही हमें मिर्ची लगती हाँ !’ हम तो सादे खाने में ही संतुष्टि रखते हैं | वैसे ये मिर्ची तो आजकल कॉमन है एक-न-एक दिन उन सभी को लगती है, जो तीखा खाने से परहेज नहीं करते, भले ही चोरी से खाएँ, झूठ बोलकर खाएँ, छिपकर खाएँ, ये इतने आदी हो जाते हैं कि इन्हें होश ही नहीं कि दूसरों के हिस्से का भी खाए जा रहे हैं, शो ऑफ में मरते हैं फिर रोते हैं | जब तेज़ मिर्च लग जाती है बेतहाशा तो सीधा काम तमाम ही होता है |

अच्छा हुआ तुमने समय रहते मुझे फोन कर लिया | आज से ही शुरू कर दो सादा खाना, लंबा जिओगे और तुम्हारे जितने मित्रो को मिर्च लग रही है तीखे खाने से उन्हें भी समझाओ | वरना…….तो राम ही रखवाला है |’

— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।