याद उनकी
शरद की ठिठुरन
साथ दे रही
हिमालय से आती
ठंडी हवाएं कह रही
छत पर बैठे क्यों अकेले?
क्या किसी की याद आई!!!
ना आसमां में चाँद की रोशनी
ना पास तुम्हारे कोई परछाई
कह उठा मन
“यादों का बिछौना, यादों की रजाई है”
धुँध नहीं ,
बस ओस-सी मेरी आँख भर आई है
तपिश उसकी पास है
साथ है मेरे हमेशा
शब्द-शब्द शुरुआत है
दिखता इंद्रधनुष के जैसा
सुबह का सूरज निकलेगा
होगा दर्शन उनका जरूर
यादें हैं वो हमेशा ही रहेंगी
इनमें अब मेरा क्या कुसूर?
प्रवीण माटी