हत्या या आत्महत्या क्यों ?
प्रतिदिन समाचार पत्र हों टी.वी. चैनल्स सभी पर ऐसी ख़बरे आम हो गई है ।
अवैध सम्बन्ध के चलते हत्या ,सामूहिक हत्या या आत्महत्या जैसी घटनायें क्षुब्ध करती हैं मन को ।
लेकिन कुछ अवैध सम्बन्ध वास्तव मॆं होते हैं तो कुछ शक्की मन की उपज मात्र होते हैं ।
जीवन साथी पति या पत्नी दोनों मॆं से किसी एक ने दूसरे को किसी अन्य स्त्री-पुरुष से हँसकर बात करते देख लिया या कहीँ आते-जाते कोई वाहन न मिलने या देर हो जाने की स्थिति मॆं , मजबूरी मॆं किसी के साथ उसके वाहन मे लिफ्ट लेकर आते देख लिया हो तो उसके मन मॆं शक ने अपना कुअसर शुरू कर दिया कि इन दोनो के बीच ज़रूर कुछ गलत चल रहा है ।
बस ! यहीं से एक जघन्य अपराध जनम ले लेता है ।
क्या केवल स्त्री-पुरुष के आपस मॆं हँसने बोलने के साथ उठने-बैठने की वजह केवल गलत सम्बन्ध ही हो सकते हैं ?
आज़ सब कामकाजी है महिलायें ,पुरुष और युवक-युवतियाँ भी ऐसे मॆं एक दूसरे के साथ टीम वर्क भी करना पड़ता॥
दुख होता है ऐसी दुखद और अंधी मानसिकता की शिकार हुई मासूम जिंदगियों के असमय ,अकारण ही मौत का शिकार हो जाने पर ।
दोषी व्यक्ति अपनी कमजोर मानसिकता व नशे जैसी गलत आदतों को दूर करने के बजाय खुद तो मरता ही है ।
साथ ही पूरे परिवार को भी तबाह कर देता है और बस !कारण बना लेता है खुद ही, कि उसके साथी के किसी गैर पुरुष या स्त्री के साथ अवैध सम्बन्ध ।
माना कि अवैध सम्बन्ध हों भी किंतु क्या हत्या और आत्महत्या ही एक समाधान है इसका ?
अरे !आप अपने साथी से बात कीजिये फ़िर वो पति हो या पत्नी ।
यदि दुर्भाग्य से सम्बन्ध हैं भी तो आप उन्हें प्यार से समझाइये सही और गलत का परिणाम और यदि वो फ़िर भी ना समझे और स्थिति ये हो गई हो कि आप एक साथ,एक छत के नीचे नहीँ रह सकते तो अलग हो जाइये।
अपनी ज़िंदगी नये सिरे से शुरू कीजिये , हाँ! वक्त तो अवश्य लगेगा थोड़ा सम्भलने मॆं किंतु रोज़ रोज़ की लड़ाई-झगडे और फ़िर हत्या या आत्महत्या से तो कम से कम बच जायेंगे और बचना भी चाहिये ।
न कि खुद भी मरें और अपने साथी और मासूम बच्चों को भी मौत के घाट उतार दें ?
इस सब मॆं उन मासूम बच्चों या जीवन साथी की क्या खता ?
जो उनकी भी जान ले ली जाये ?
उन्होंने ने तो अभी दुनियाँ ठीक से देखी भी नहीँ और माता-पिता के एक गलत कदम उनकी जान ही ले गया।
ये कहाँ की इंसानियत है ?
जो माता-पिता अपने आपको नहीँ सम्भाल पा रहे आखिर वो अपने बच्चों और उनके भविष्य को ही क्या संवारेंगे ?
आखिर मुश्किलें किसके जीवन में नहीं आती ? किन्तु उनका हल ढूंढने के लिए ईश्वर ने हमें एक स्वस्थ मस्तिष्क दिया है सोचने-समझने की क्षमता दी है आर्थिक स्थिति गड़बड़ा जाए तब कुछ लोग जीवन लीला को समाप्त करके सोचते हैं कि हर समस्या खत्म हो जाएगी किन्तु जिन्हें आप पीछे छोड़े जा रहे हैं उनकी सोचिए कि वो तो जीते जी मर ही जायेंगे।
चिन्तनीय विषय है कि इंसान अपनी गलत आदत और घटिया मानसिकता के चलते अपनी हँसती खेलती गृहस्थी उजाड़ देता है ।
इसे केवल बीमार मानसिकता ही कहेंगे ।
वरना आप परिवार या किसी सामाजिक संस्था के साथ बैठकर इन समस्याओं को सुलझा जा सकते है ।
मुश्किलों का डटकर सामना कीजिए ,कुछ भी असम्भव नही है।
आज़ हमारा समाज किस प्रकार पतन की ओर जा रहा है ।
इसके अनेक कारण हैं जैसे क्रोध शक ,बेरोज़गारी या नशा ,नेट ,आभासी दुनियाँ जिसका सही प्रयोग कम और दुरुपयोग अधिक हो रहा है।
इन सबसे बचकर अपने आप और अपने परिवार को सुरक्षित माहौल दीजिये ।
अपने स्वयं के साथ-साथ अपने बच्चों की शिक्षा और संस्कार पर विशेष ध्यान दीजिये ,ताकि वो एक अच्छा इंसान बन सके ।
खुश रहिये…और औरों को भी खुश रखिये, फ़िर देखिये ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है ।
क्यों ना इसको ख़त्म करने की अपेक्षा बचाने के उपाय तलाश किये जाए ।
तलाशने से क्या नहीँ मिलता ?
जैसी भी हो उसी को स्वीकार करना सीखिये ।
ज़िंदगी कब मिलेगी दोबारा..म
“ज़िंदगी अनमोल है अजी इसे यूँ न गंवाइए।
थोड़ा औरों को मुस्कुराने दें,थोड़ा आप मुस्कुराईए ॥
— सविता वर्मा ‘ग़ज़ल’