कविता

मुक्तक

1

पलट देखो …. नाइन और सिक्स …. जिन्दगी रूप
हर्ष विषाद … दो हो एक हो जाए …. बातें चिद्रूप
उलट सीखो ….. छत्तीस ,तिरसठ …. आत्मा जो चाहे
पिच्छिल मनु …. उल्टा सोच के संगी …. तम की कूप

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2

गृह बुजुर्ग / थके बोझ उठाये / हरि में ध्यान
वय आहुति / पकी वंश फसल / गांठ में ज्ञान
कार्य में दक्ष / जीवन का आधार / सकल स्तंभ
जीवन संध्या /स्नेह की प्रतिमूर्ति / चाहे सम्मान 

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1

भू स्वर्ग हारा
डल खो दिया बल
जल प्रलय

2

चन्द्र के दाग
धोने दौड़े उर्मियाँ
पूनो की रात

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    कृपया इन शब्दों का अर्थ लिखें, ताकि कविता समझ में आ सके- चिद्रूप, पिच्छिल, उर्मियाँ

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      चिद्रूप = परम ज्ञानी … अच्छे स्वभाववाला
      पिच्छल = फिसल जाना
      उर्मियाँ = समुन्द्र की लहरें

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