हमराह हमारे ज़िनदगी के सफ़र में – कोई भी नही है
अकेले रैह गैए हैं हम – किसी को हमारी ज़रूरत नही है
वजूद अपना खो चुके हैं हम – भुझती हुई शमा की माननद
अनधेरा हो गैया है ज़िनदगी में – कया रौशनी की हमें ज़रूरत नही है
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यूं तो हर शख़स करता है गुनाह – इस भरपूर जहाँ में दोसतो
परदा जिस से उठ जाए – दर असल मुजरम वोह ही है
तरस रहे हैं लोग आाप की – एक ही झलक के लिये
देख ले जो सूरत आप की – ख़श नसीब वोह ही है
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शौक़ मुहबबत का तो है – हर किसी को इस दुनिया में
मगर यक़ीन हर किसी को – अपनी कोशिश पर नही है
तमनोओं से कभी भी – होते नही फ़ैसले मुक़दर केे
कोशिशें तो लाख होती हैं – कया तक़दीर कोई चीज़ नही है
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तसवीर आप की हम ने – सजा रखी है हमारे दिल में
बंद करते हैं अपनी आँखें – और देख लेते हैं आप को
ना ही ज़िकर ना ही ख़याल – किसी और का आता है ज़हन में
तनहाई के सिवा अब और कुछ – दिल को भाता नही है
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ख़तम कर दी हम ने तो दिल से – मुहबबत ही आप कुी –मदन–
दिल अब हमें किसी और से – लगाने की ज़रूरत नही है
कैहने को तो अहसास दिलों के – जुडे होते हैं दिलों से
मगर हमारे दिल के दरद का – किसी को अहसास ही नही है