लघुकथा

लघुकथा – बड़ा बनने की चाह

रेनू प्रति दिन बच्चे को छोड़ने कन्वीनियंट विद्यालय जाती थी। जहां उसकी हर तरह के लोगों से मुलाकात भी होती। कोई बड़ी-बड़ी गाड़ियां लेकर तो कोई मीलों पैदल चलकर भी आता ।
रेनू इन चीजों को बहुत ध्यान से देखती और समझती। ऐसे तो वो बातें हर किसी से करती लेकिन धन-धान्य से संपन्न लोगों से बातें कर वह कुछ अलग ही आनंद महसूस करती ।
उनकी संपन्नता का राज जानने की कोशिश करती ।उसके अंदर भी यह चाह जगती,” काश मेरी जिंदगी भी इन चीजों से भरी हुई होती तो कितना अच्छा होता।”इन चीजों को लेकर उसके पति से अक्सर तकरार भी हो जाता।
एक दिन रेनू बस से सफर करते हुए एक इंसान (राजन) से मिली जो पल भर में ही तारीफों के पुल बांधते हुए निजी जीवन की बातें भी पूछने लगे। रेनू भी उसकी बातों से प्रभावित हो गई। उसने उसकी मनः स्थिति को समझते हुए चौंका बर्तन कर एक मोटी रकम का झांसा देकर अपने घर आने का कहा।रेनू की धनवान बनने की चाह मानो कुछ भी करने की उत्सुक थी। उसने कुछ और जानकारी लेना भी जरूरी ना समझा और अगले दिन से ही आने की हामी भर दी।
रेणु मन ही मन बहुत प्रसन्न थी। मना करने के डर से उसने पति को भी इस मामले में बताना जरूरी ना समझा।
अगले दिन बताए पते पर रेनू उसके घर गई। वहां जाकर घर के कामों के बाद राजन जी पैर दर्द की शिकायत बताते हुए दबाने का निवेदन किये।रेनू भी थोड़ा दबा दी और वहां से चली गई। ‌अगले दिन और हर दिन एक नई अंग की दर्द की शिकायत करते। ना चाहते हुए भी रेनू करने के लिए बाध्य रहती।
आज तो उन्होंने पीठ दर्द की शिकायत कर दी। रंजू तो वह भी कर रही थी ।इसी दौरान किसी काम के सिलसिले में उनसे दो लोग मिलने आए और रेनू को उस अवस्था में देख ,व्यंग करते हुए कहा, “वाह राजन जी, क्या बात है आपकी तो अंधेरे में भी चमक है!” तब तक एक फोटो खींच लिया ।रेनू ने
गिड़गिड़ाते हुए बोला— साहब मेरी फोटो अभी ही डिलीट कर दीजिए, प्लीज! मैं तो बड़े बनने की चाह मैं सब कुछ कर रही हूं और कुछ नहीं। महंगे कपड़े , आराम दायक सामान खरीदने के लिए मेरी इच्छा जो आज तक पूरी न हो सकी बस उसी के लिए प्रयास कर रही हूं।
……… तो इस रास्ते से! क्या करोगी इन महंगी कपड़े और साधनों का ! तन ढकने के लिए कपड़ों के मूल्य का क्या महत्व ? यदि मैं यह फोटो किसी को भी दिखा दू तो तुम्हारी क्या इज्जत रह जाएगी ? कम से कम पैसों के लिए अपने इंसानियत को मत बेचो।
यह सब सुन वह बोली —-माफ कीजिएगा साहब हो सके तो आज तक मेरी मजूरी दे दीजिए ।
वह तनख्वाह ले वहां से चली गई और फिर अपनी छोटी सी दुनिया में……।
— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - [email protected]