ग़ज़ल – पल रही है ज़िंदगी.
सोच हर दिन की नई ले पल रही है जिंदगी,
बस कभी हँस कर कभी रो ढल रही है ज़िंदगी।
काट कर यूँ मत रुलाना तुम ज़रा-सा भी इसे,
प्यार की उम्मीद पर ही चल रही है जिंदगी ।
इश्क से ही सम्भले,तो चैन मिल भी पाएगा,
बैर से कड़वी दवा-सी खल रही है ज़िंदगी।
बेवजह ही जीतने की होड़ में हम लड़ रहे,
लड़-झगड़ कर बस बिगड़ती,गल रही है ज़िंदगी।
आज आओ सब मिलें सोचें ज़रा समझें ज़रा,
लौ लिए दिल में ‘मिलन’ की जल रही है ज़िंदगी।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’