ऑफिशियल रिलेशन
“देखिए भाभीजी, हरीश भाई साहब ने अपने ओफिसिअल रिकॉर्ड में नॉमिनी में आपका नाम वाइफ के रूप में नहीं लिखा था.”
“मेरा नाम नहीं लिखा था, तो फिर किसका लिखा था ?”
“जी, वाइफ का कॉलम तो ब्लेंक है.”
“तो आप उसमे मेरा नाम लिख दीजिए.”
“देखिए ऑफिसियल कामकाज ऐसे नहीं होते.”
“क्यों ? पिछले 18 साल से आप हमारे पड़ोस में रह रहे हैं. आप ही क्यों इस ऑफिस के ज्यादातर लोग हमारे पड़ोस की कॉलोनी में ही रहते हैं और सभी जानते हैं कि मैं स्व. हरीश जी की वाइफ हूँ.”
“देखिए भाभीजी, आप हम लोगों के पर्सनल रिलेशनशिप को ऑफिसियल रिलेशनशिप से मत जोड़िए.”
“फिर क्या करूँ मैं ? आप ही बताइए.”
“आप नोटरी से पचास रुपए के स्टाम्प पेपर में एक शपथ-पत्र बनवा कर ले आइए, जिसमें दो गवाहों के हस्ताक्षर होंगे. 60-70 रुपए में नोटरी आपका काम कर देगा.”
वह सोचने लगी कि यह कैसी विडम्बना है, जिस ऑफिस का हर अधिकारी-कर्मचारी उसे पिछले अठारह साल से हरीश जी की वाइफ के रूप में जानता और मानता है, वह कोई मायने नहीं रखता. उसे हरीश की वाइफ होने की प्रूफ देने के लिए 50 रुपए के स्टाम्प पेपर में दो गवाहों, चाहे वे फर्जी ही क्यों न हो, देने पड़ेंगे.
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा