गजल
भूलने में जिन्हें थे जमाने लगे
आज बिछड़े वही याद आने लगे
वह सफर मुख्तसर और मुलाकात भी
हमको मंजर पुराने दिखाने लगे
लगता धूमिल हुआ वक्त का आईना
हम भी चेहरे को अपने छुपाने लगे
बात करना नहीं स्वागतम है लिखा
हमको अच्छे सभी वह बहाने लगे
आंख धुंधली हुई रुक रही है कलम
बे सबब हम स्वयं मुस्कुराने लगे
हम नहीं जानते कितना लंबा सफर
वह फसाने ही थे जो फंसाने लगे
— मनोज श्रीवास्तव