कविता

हम सबके सियाराम

हमें तो अच्छे से पता ही है
कि हम सबके राम सियाराम हैं
पर उनको अब तक क्यों नहीं पता चल रहा है
कि उनके भी राम ही हमारे सियाराम हैं,
या तो उन्हें पता नहीं जो वो गुमराह हो रहे हैं
अथवा खुद पर बड़ा घमंड कर रहे है,
और अपने मन के आइने में देखने के बजाय
राम जी को ही आइना दिखाने का दुस्साहस कर रहे हैं,
अपने सौभाग्य पर दुर्भाग्य का लेपन कर रहे हैं
और दिन ब दिन गहरी खाई में गिरते जा रहे हैं।
इनके राम, उनके राम के चक्कर में
सबके सियाराम जी को बांटने की खातिर
स्वार्थ का गंदा, घिनौना खेल खेल रहे हैं,
हंसी का पात्र तो वे सब बन ही रहे हैं
फिर भी बड़ा अकड़ दिखाने की ओट में तने जा रहे,
राम की माया देखकर भी आंख वाले अंधे बन रहे हैं
बस इसीलिए तो रामजी भी उनको सबको
बड़े प्यार, दुलार से भरमा रहे हैं
और अपनी शरण में आने का अवसर देकर भी
उन सबको कठपुतली की तरह नाच नचा रहे हैं,
अपने से दूर रखने का इंतजाम करते जा रहे हैं।
क्योंकि सबके राम, सियाराम जी को तो पता ही है
कि वे उन सबके सियाराम नहीं है
जो उन्हें निज स्वार्थ का मोहरा समझ रहे हैं
और बड़ी सफाई से उनका अपमान कर रहे हैं।
बाकी वे सब तो बड़े निश्चिंत भाव से हैं
अपना कर्म धर्म और मर्यादा का पालन कर रहे हैं
जो राम जी को सबका पालनहार मान रहे हैं,
सिर्फ उनके ही नहीं सबके सियाराम हैं
यही मानकर बहुत खुश हो बड़ा मगन हो रहे हैं,
राम जी को सिर्फ एक नाम भर नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम को जीवन मंत्र मान रहे हैं।
आपके सियाराम हैं या नहीं आप ही जानें
हम सब तो जान ही नहीं मान भी रहे हैं
बस इतने भर से ही ंबहुत खुश हो रहे हैं
जय श्री राम जय श्री राम बोल रहे हैं
क्योंकि हम सबके ही सियाराम जी हैं
बड़े विश्वास से रामजी के सारे भक्त यही कह रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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