कविता
हमारा समय
भर गया है घनघोर अंधकार से
अंधेरा इतना घना
कि दिखता नहीं कुछ भी।
वक्त की पगडंडियां
चलते – चलते
थक गया है तन
और मन भी
उदासी को छांटता हुआ।
न जाने क्यों
सूरज की कोई किरण
फूटती नहीं कि
फैल जाये उजाला
और गायब हो जाये
धरती का अंधेरा।
दिखे सब कुछ साफ-साफ
आसान हो जाये
ढूंढना अपनी चीजें
जो खो गयी थी
इस बीहड़
निविड़ तम में।
— वाई. वेद प्रकाश