गीतिका/ग़ज़ल

उतर आया धरा सावन

उतर आया धरा सावन, जरा दिल खोल आने दो।
धरा प्यासी ज़माने की, पिपासा को बुझाने दो।
उठा है दर्द मिलने का, रही बेचैन यह कब ‌से,
गगन की प्रीत धरती से, इसे दिल से लगाने दो।
मचा है जोश जो दिल में, बना है मेघ का गर्जन,
तड़ित की रोशनी ले के, चला धरती जगाने को।
भरी हैं नेह से बूंदें, भरा है जोश बांहों में,
लगा सावन बहारों का, चला मन प्रेम लुटाने को।
कहाँ मिलते इन्हें देखो, रहें इजहार नित करते,
यही ऋतु है सुहानी अब, दिवाने दिल जताने को।
लिया‌ अब ओढ़ आंचल है, धरा दुल्हन नवेली सी,
खड़ी बांहें पंसारी है, पिया अम्बर मनाने को।
अंधेरा खूब छाया है, घने मेघा करें पर्दा,
बड़ा खामोश आलम है, चला सजनी रिझाने को।
नजारा शिव निराला है, निराली खेल कुदरत की,
रहो मिल के सदा तुम भी, यही आता बताने को।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995